विधाता ने प्रकृति का एक ही शाश्वत सत्य मृत्यु को अपने ही पास रखा है। कोई भी विज्ञान, कितना भी क्यो न विकास कर ले, लेकिन मृत्यु पर विजय प्राप्त नहीं कर पाई। धार्मिक ओर आध्यात्मिक विज्ञान मै ही यह कथाए पढने को मिलती है लेकिन वास्तविक धरातल पर ऐसा नहीं पाया गया।
विज्ञान ने शरीर के कइ अंगों का प्रत्यारोपण कर दिया लेकिन आत्मा का प्रत्यारोपण नहीं कर पाया। कारण वह शरीर में दिखाई नहीं देती,केवल उसकी उपस्थिति से ही शरीर जिन्दा रहता है।
पांच भाई जो आध्यात्मिक जगत में माने गए हैं- पंच महाभूत – आकाश, पृथ्वी, जल, वायु और पानी तथा इनके पांच गुण ओर पांच इनकी तनमात्राए व सोहलवां मन यह सब मिलकर कर शरीर की रचना करते है।
इनमें प्रकृति दत्त आत्मा ही इस शरीर को जागृत करती है। इनमें मन को पंच महाभूतों की बहन माना जाता है। बस यही मन तमाम तृष्णा को जागृत कर इस संसार से विदा नहीं होना चाहता है। मृत्यु लोक को यहा सुसराल कहा गया है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार बड के वृक्ष को सबसे अधिक आयु वाला वृक्ष मानते हुए इसकी पूजा की जाती है। ज्येष्ठ मास की अमावस्या को कोई भी महिला बड के वृक्ष की पूजा करती है तथा कच्चे दूध से बड को सींचती है तथा सात तरह के अनाज वहां चढाती है तथा पार्वती की पूजा करती है तो उसके पति की लम्बी आयु हो जाती है और मृत्यु भय टल जाता है।
एक राजा के संतान नहीं होती है तो वह तो वह यज्ञ अनुष्ठान करता है और उसे एक पुत्री की प्राप्ति होती है लेकिन ज्योतिष के लोग बताते है कि वह बारह वर्ष की आयु मे विधवा हो जाएगी। इसलिए इसे ज्येष्ठ अमावस्या को बड के वृक्ष की पूजा करवाए तथा पार्वती जी की पूजा भी करवाए।
बारह वर्ष की आयु में जब ऊसका पति मर गया ओर यमराज लेने आए तो उस लड़की ने यमराज के पांव पकड लिए ओर यमराज ने उसे सौभाग्यवती होने का वरदान दे दिया ओर उसका पति बच गया।
धार्मिक मान्यता में ज्येष्ठ अमावस्या का विशेष महत्व होता है तथा बड वृक्ष व पार्वती जी की पूजा की जाती है। प्रकृति आज भी अपनी ही योजना सृष्टि पर लागू करती है। चाहे मानव कुछ भी कर ले। प्रकृति से उलझने वाला प्रकृति द्वारा दंडित किया जाता है।