आग अपना प्रचंड रूप धारण करे इससे पहले धुआं उठना प्रारम्भ हो जाता है और जैसे ही आग हवा की संगत करके आगे बढ़ती है वैसे ही धुआं भी आग कों छोड़ हवा की संगत करके चारों तरफ फैल जाता है। कहीं पर आग लग रही है इस बात का पैगाम धुआं छोड़ जाता है।
मन रूपी चूल्हे में जब ईर्ष्या रूपी लकड़ियां जलने लगती हैं तब अहंकार रूपी धुआं उठकर वातावरण को दूषित करने लग जाता है और लोभ रूपी उठे धुएं के बादल को लाभ रूपी तराना गाते हुए हवा उठा कर ले जातीं हैं और वातावरण को शुद्ध कर देती है। इससे आसपास धुएं के आतंक से मुक्ति मिल जाती है।
कुछ ऐसा ही होता है जमीनी हकीकत में भी तब देखने को मिलता है जब ज्ञान और बुद्धि की गठरी को कंधे पर डाल कर कोई अपनी शक्ति और अहमियत का प्रदर्शन कर खुद को दूसरों से श्रेष्ठ मानने की झूठी कवायद करता है। ऐसे में वक्त के पत्थर से ठोकर खाकर वह गिर जाता है और उसकी गठरी बिखर जाती है।
उसमें से ज्ञान बुद्धि के स्थान पर घृणा, टूटन, विरोध, वैमनस्य और अलगाव जैसे तत्व निकल कर योजना को फैल कर देते हैं और अंहकार का शंखनाद नहीं हो पाता।
इतिहास के पन्नों को पलट कर देखते हैं तो कुछ ऐसा ही हुआ था, जब शक्ति के सूरमा को ज्ञान का बादशाह एक राजा को परास्त करने के लिए अपने साथ ले गया।
उसने सीधा राजधानी पर आक्रमण कर दिया और विजय की जगह उसे जान बचाने के लिए वहां से भागना पड़ा। भागते भागते संध्या में एक बुढिया की झोपड़ी में शरण ली। बुढिया चूल्हे में लकड़ी जला खाना बना रही थीं।
रोटी सिंककर जैसे ही तैयार हुई बुढिया ने उसे दोनों के सामने खाने के लिए रख दी। दोनों बहुत भूखे थे, रोटी देखते ही उसे बीच में से तोड़ने लगे तो दोनों के हाथ जल गए।
यह हाल देखकर बुढिया बोली तुम दोनों भी उन शक्ति के सूरमा और ज्ञान के बादशाह की तरह मूर्ख हो जो रोटी को बीच में से तोड़कर खाने की कोशिश कर रहे हो। उन दोनों ने भी झूठे अहंकार के चलते राजधानी पर आक्रमण कर दिया और वापस भाग कर आना पड़ा।
शक्ति के सूरमा को शर्म आ गई और ज्ञान का बादशाह बुढिया के चूल्हे की तरफ़ जलती हुई लकड़ी और उसके धुएं को देखता रहा और सब कुछ समझ गया।
चूल्हे की आग में ज्ञान का धुआं देख वह ज्ञान का बादशाह शर्मसार हो गया और चुपचाप वहां से चला गया। संत जन कहते हैं कि हे मानव ज्ञान किताबों, कथा, साहित्य, भजन कीर्तन, उपदेश केवल यही पर नहीं होता ज्ञान तो सर्वत्र ओर सर्वव्यापी हैं और सभी में है।