सबगुरु न्यूज। कितनी बदनसीबी होती है उस शमा की जिसे रात होते ही जला दिया जाता है और सुबह होते ही बुझा दिया जाता हैं।
स्वार्थ की रात उस शमा की शान में बहुत आलीशान कसीदे कढती है ओर रातों रात भगवान बना अपने कार्य को सिद्ध करती है। सुबह होते ही उस शमा को बुझा दिया जाता है और उस बुझी शमा के धुएं से कई सवाल उठते हैं। उस समय केवल पंतगे की लाश जबाब बन कर रह जाती है।
आंधी तूफान जब अपनी प्रचंड गति से चलते हैं तो बिना भेद किए अच्छे व बुरे सभी कचरे को अपने साथ उड़ा ले जाते हैं। तूफान के विराम के साथ ही कचरा सर्वत्र फ़ैल जाता है और इंसान अपने मतलब के लिए इंसान के टुकड़े कर उस कचरे से कहीं भगवान और कहीं शैतान बना देते हैं।
कचरे से बने ये भगवान् और शैतान जब अपने अस्तित्व का प्रमाण देने लग जाते हैं। जब भारी पडने लगते है तो इनसे भय खाकर स्वार्थी मानव इनके ही टुकड़े कर इनके ओढे कफ़न को जला देते हैं। इतना ही नहीं अपने कार्य को सिद्ध करवाने के लिए फिर इन्हें चादर ओढाकर भगवान् बना देते हैं।
सदियों सें चली आ रही काल चक्र के इतिहास की कहानियां यह साबित करतीं हैं कि स्वार्थ की पूर्ति ना होने पर मंदिर में विराजे भगवान को पाखंड और अंध विश्वास बताकर लज्जित किया जाता है और वही जमीनी भगवानों को अलंकरण व उपाधियों से नवाजा जाता है, सभी के सामने उन्हें पूजा जाता है।
सांप को आस्तीन में पालकर कुचलना इतना आसान नहीं होता जितना असंभव एक शेर का पेड पर चढना होता। ना ही ये उन फूलों की खुशबू हैं जो हर एक उसकी लुत्फ़ उठा ले।
स्वार्थी जीव, गिरोह बना कर इन्हें बदनाम करने के शहनाई, नगाड़े और ढोल बजवा कर जगह जगह पर अपने दूत भेज अंजाम देने की कवायद करते हैं। ऐसे में आमजन बंट जाते हैं और कुछ उनके, कुछ पराये हो जाते हैं।
संत जन कहते है कि हे मानव तू किसी भी तरह के भगवान की सत्ता में भले ही विश्वास मत कर लेकिन तू अपने अन्दर बैठे उस महामानव की ओर झांक, तुझे हर जवाब मिल जाएगा और तेरे हर मार्ग का चयन जहां कर्म ही पूजा है, हो जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल