सबगुरु न्यूज। विचारक और इतिहास बताता है कि हे भले मनुष्य किसका समय एक जैसा रहता है। संपत्ति के बाद विपत्ति और विपत्ति के बाद संपति आती है। सदा ही यह क्रम चलता रहेगा। इसी का लेखा जोखा कर काल चक्र मूक गवाह बन अपने पीछे एक इतिहास छोड़ जाता हैं बस वही बातें आने वाली पीढ़ियों के लिए पथ प्रदर्शक बन जाती हैं।
सदियों सें पीढ़ी दर पीढ़ी मानव सब बाते जानते हुए भी जब इनका अनुसरण नहीं करता है और बदले में बदलता युग इस पर प्रहार करता है। वर्तमान में चांद सितारों की दुनिया की ओर बढता व्यक्ति जो उन्नत शिक्षा व विश्व ज्ञान से सरोकार रखता है तथा भौतिक द्वंदवाद मे इतना उलझ हुआ है कि वह सब कुछ कर गुजरता है अपने अस्तित्व को बचाने के लिए। ये अस्तित्व का प्रश्न आते ही सब कुछ असंतुलित होने लगता है।
भौतिक ओर अभौतिक संस्कृति में बस यही से संघर्ष की शुरुआत हो जाती है ओर अभौतिक संस्कृति पर भारी पडती है भौतिक द्वंदवाद। इस भौतिक द्वंदवाद में व्यक्ति अभौतिक संस्कृति के मूल्यों को छोड़ देता है और उसके आचार विचार, व्यवहार प्रतिमान, नीति नियम, श्रद्धा, विश्वास यह सब धरे रह जाते हैं ओर रह जाती हैं विजयी होने की झूठी लालसा।
अभौतिक संस्कृति का जब झूंठा जामा पहने व्यक्ति अन्दर के मन में भौतिक दुनिया बसाए बैठा है और उन्नत शिक्षा लेने के बाद भी झूठे भगवान् की झूठी कहानी बताने लगता है तो भौतिक द्वंदवाद में नहीं पडा व्यक्ति तो इस कहानी को सच के भगवान की सत्ता में अपने आप को रमा लेता है और भौतिक द्वंदवाद मे ऊलझा व्यक्ति आपस में संघर्ष में लग एक दूसरे को धोखा देने में उतारू हो जाते हैं ओर संघर्ष शुरू हो जाता है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव तू वास्तव में जहां भी जाता हैं तुझे कुछ ही समय में पूरा ज्ञान हो जाता है तो भी तू चन्द स्वार्थ के लिए झूठे लोगों सें जुड़ कर तथा अपने कुनबे को भी जोड़ लेता है और हादसा होने पर दया की भीख मांग समाज में संघर्ष करा देता है। इसलिए तू तेरे ज्ञान, विवेक का इस्तेमाल करके आगे बढ़ तथा अभौतिक संस्कृति के मूल्यों को छोड़ क्योंकि यह युग भौतिक द्वंदवाद का है। अपने अन्दर बैठे उस महामानव की बात सुन जिससे तेरा ओर समाज का कल्याण हो और तेरे कारण सामाजिक संघर्ष न हो।
सौजन्य : भंवरलाल