सबगुरु न्यूज। हे मानव भले ही तू सत्य को स्वीकार मत कर लेकिन एक दिन तेरे शरीर को बुढापा आकर घेर लेगा और उसी का राज तेरे शरीर पर रहेगा, उस समय भी तेरा लोभी मन विषय वासनाओं में लगा रहेगा और तेरे मुंह की जीभ भी बार बार लपलप करेंगी लेकिन इस बुढ़ापे के राज में तू चीखता चिल्लाता ही रहेगा।
तेरे मुंह मे दांत नहीं होंगे, पेट में आंत दमदारी छोड़ देगी। शक्तिदायक औषधियां लेकर बिना वजह में बुद्धि बल व शारीरिक बल का अनावश्यक प्रदर्शन करेगा फिर भी ये सब मखमली पैबंद ही साबित होंगे। ये तेरे जागने का काल है बालपन व जवानी तेरी पीछे रह गई है और आने वाला कल तेरे शेष बचे जन्म दिन का बुढापे के रूप में देगा।
ये पाप पुण्य का खेल नहीं है और ना ही मैं तू का कोई परिच्छेद है। ये सब बीते युगों की संस्कृति थी जिसे भले ही हम कंधे पर डाल कर घूमते रहे लेकिन कलयुग की संस्कृति है कर्म कर और फल उठा, गुनाहों से बचता रह क्योकि ये सब अब पाप पुण्य की परिभाषा में नहीं आते केवल अपराध की श्रेणी में माने जाकर तुझे दंड दिलाएंगे।
छल कपट और पाखंड करके अगर तू फिर भी बच जाएगा तो भी तेरा पूरा इंतजाम कुदरत ने बुढापे के रूप में कर रखा है जहां स्थायी रोग ही तेरे जीवन के आखिरी साथी बन तुझे काल के द्वार पर छोड कर लोट जाएंगे। चाहे तेरी कोई भी शास्त्र, वकालत करे लेकिन फैसला तुझे कुदरत मौत के रूप में सुनाएगी तथा तेरे मरने के बाद हम भले ही कुछ भी कर लें पर जमीनी हकीकत से तू देख नहीं पा सकेगा भले ही आध्यात्मिक दृष्टिकोण कुछ भी माने।
चूंकि तू हमारा पूर्वज बनेगा इस कारण तेरी फोटो पर सब श्रद्धा के फूल चढाएंगे। जमाने की शर्म के कारण न कि तेरी धन सम्पत्ति के कारण। यदि तूने तेरे जीते जी लोक कल्याण के लिए वास्तव मे कार्य किए हैं तो बिना श्राद्ध ही सभी जन श्रद्धा के फूल चढाएंगे ओर तुझे देवता की तरह स्थापित करेंगे भले ही भगवान तुझे देवता नहीं बनाएं।
संत जन कहते हैं कि हे मानव तू समय रहते हुए नेक व नीति के अनुसार कार्य कर ताकि बुढापे में सब तेरी लकड़ी बनकर तुझे सहारा दें, भले ही तेरी लकड़ी मे दीमक ही क्यों न लग जाए।
सौजन्य : भंवरलाल