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बदला कर्म का धरम बनी चिंगारी से आग - Sabguru News
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बदला कर्म का धरम बनी चिंगारी से आग

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बदला कर्म का धरम बनी चिंगारी से आग

सबगुरु न्यूज। कोई व्यक्ति जब लाठी लेकर निकलता है और सरेआम ऐलान करता है कि यदि उसकी जय जय कार करोगे तो लाठी की मार से बच जाओगे और नहीं तो लाठियां खाओगे। इस धरती पर केवल शक्तिशाली ही व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है क्योंकि दुर्बल व्यक्ति तो क्रोध केवल अपने भाग्य पर करता है परमात्मा को प्रार्थना करता है।

कर्म में जब लोभ-लालच, छल, स्वार्थ, भेदभाव, ऊंच नीच, लाभ हानि आदि आ जाते हैं तो उस कर्म का धर्म तो बदल जाता हैं और यही कर्म, चिंगारी को आग बना देता है तथा इसी आग में भौतिक व अभौतिक संस्कृति जल जाती हैं और वह ऐसे गहरे घाव छोड़ जाती हैं जो भरे नहीं जा सकते।

अपनी विजय गाथा लिखवाने के लिए ऐसा कर्म मनमाना व्यवहार कर सभी को दहशत के उस माहौल में डाल देता है जहां हर आतंकी और तानाशाह भी उससे पीछे रह जाते हैं। दहशत का यह माहौल समाज की संस्कृति व धारणा को हवा के विपरीत दिशा में डाल देता है तथा सभी को उस जहरीली हवाओं से पिटने के लिए मजबूर कर देता है।

यहां, आध्यात्मिक, विज्ञान और धर्म उस मौन व्यक्ति की तरह हो जाते हैं जिसका सब कुछ लुट गया हो और वह मरघट के रास्ते की तलाश कर रहा हो, क्योंकि मरघट के अलावा उसके पास ऐसी कोई भी जगह नहीं है जहां वह शांति के साथ रह सके।

शक्ति के सूरमा इस कलयुग में धर्म के युद्ध की बात सुन कर भी नकार जाते हैं और धर्म के उस युद्ध में अपना हित डाल कर धर्म व आध्यात्म का अर्थ ही बदल देते हैं तथा कर्म को दूषित बना कर्म का धर्म ही बदल देते हैं।

तात्कालिक परिस्थितियों को व्यक्ति झेल तो लेता है लेकिन उनके घुटन की चिंगारी एक दिन आग का अलाव जलाकर इस कर्म के बदले धर्म को जला देतीं हैं।

संत जन कहते हैं कि हे मानव तू अपने कर्म को कर्म की तरह से कर, उसे कामधेनु बनाकर कर्म मत कर तेरा यह कर्म ही एक दिन कर्म के बदले धर्म को जला देगा।

सौजन्य : भंवरलाल