सबगुरु न्यूज। नम्रता अहंकार का पतन कर देती है। अहंकार के ढोल नगाड़े लेकर जब अहंकारी विजय की ओर बढता है तो नम्रता उसकी जय जयकार कर उसे ज्ञान के साथ छल लेती है और उसकी बुद्धि को भ्रमित कर मायाजाल में फंसा देती है।
अहंकारी, विषयों का आनंद लेने लग जाता है और अपने विजयी रथ को रोक लेता है। अपने आप को “दाता” मान कर बहुत कुछ देने का वचन देता है तब नम्रता अपनी झोली का विस्तार कर उस अहंकारी को अपनी झोली में डाल कर ढंक देती है तथा उसके अस्तित्व को मिटा देती है।
अहंकारी का ध्यान विषयों में पड़ते ही उसके विजय रथ का पहिया जमीन में घुस जाता है और वह कर्ण की तरह धोखे से मारा जाता है।
मधु व कैटभ नाम की दो अहंकार और क्रोध नाम की शक्तियां जब हाहाकार मचाती हुई सृष्टि के सात्विक व राजसी गुण रूपी विष्णु व ब्रह्मा नामक शक्तियां को मारने पर उतारू होती है तब प्रकृति का तामसी गुण बढ़ जाता है।
इसे संतुलित करने के लिए प्रकृति ओम रूपी ब्रहमांड में चन्द्र बिन्दु से मोह उतपन्न कर मधु कैटभ को जकड़ लेती है और वह मोह मे फंस विष्णु जी को नम्रता से अपने मारने का वरदान दे देतीं हैं।
विष्णु रूपी वह सात्विक गुण फिर मघु कैटभ नामक तामसी गुण का अंत कर देती है और इस प्रहार सें प्रकृति अपना पुनः संतुलन बना लेतीं हैं तथा क्रोध व अहंकार नम्रता के यज्ञ में भस्म हो जाता है।
संत जन कहते हैं कि हे प्राणी जब कोई अहंकार व क्रोध से विनाश करने पर उतारू हो तो उसका विरोध न कर नम्रता के साथ उसके साथ व्यवहार करें, उसके ध्यान को भंग कर दें, निश्चित ही अंत में वह क्रोध व अहंकार अपना मार्ग बदल कर सुखों के मायाजाल में फंस अपना अंत कर लेगा।
सौजन्य :भंवरलाल