सबगुरु न्यूज। कर्म काल के लिए रास्ता तैयार कर के भेजता है और काल उसका फल परिणाम के रूप में देता है, इसलिए काल को व्यक्ति अनावश्यक ही बली मान लेता है जबकि ये कर्म के चयन के अनुसार ही किसी को राजा ओर किसी को रंक बना देता है। काल तो मूक दृष्टा की तरह गवाह बन कर आगे निकल जाता है।
कर्म का चयन भले ही सूझ बूझ से किया हो या भावुकता से, फल तो चयन के अनुसार ही मिलता है। कर्ण जो महाभारत के काल में था उसने अपने मित्र दुर्योधन का चयन भावुकता से नहीं बल्कि बड़ी सूझ बुझ के साथ किया था। कारण था कि समाज ने उसे तिरस्कार दिया।
माता ने लोक लज्जा के कारण उसे जन्म देने के साथ ही छोड़ दिया ओर समाज उसे सूद पुत्र का दर्जा दिया और कर्ण सामाजिक व्यवस्था मे परिवर्तन लाने के लिए ताकि भविष्य में कोई सूद पुत्र न कहलाए ये जानते हुए भी कि दुर्योधन कर्म नीति सम्मत नहीं है फिर भी उसकी मित्रता स्वीकार की। दुर्योधन ने उसे राजा बना दिया भले ही यहां दुर्योधन का चयन अपने हित के लिए था जो उसकी सूझ बूझ का चयन बता रहा था।
सामाजिक व्यवस्था जो कुरीतियों से भरी हुई थी उसे कर्ण ने अपना परिचय बता दिया कि समाज जिसे छोटा समझकर टीका टिप्पणी करता है वो कौन है। काश! महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ना होते तो युद्ध के परिणाम ओर उसके बाद की सामाजिक व्यवस्था का ढांचा ही बदल जाता और आज ऊंच नीच ओर जातिगत भेदभाव की समस्या ही नहीं रहती।
कानून से भले ही यह बातें रोक दी गई लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है। कर्ण भले ही मारा गया पर वह अपने चयन के अनुरूप राजा की तरह ही मरा। यह सत्य है कि अपने हित साधने के लिए या लोभवश किसी को साधु की तरह स्थापित किया जाता है, पूर्व नियोजित ढंग से उसे उपाधि ओर अलंकारों से नवाजा जाता है और अपना हित पूरा कर लिया जाता है।
साधु के वेश में वो छद्म करने वाला फिर अपना खेल सहयोग की आड में खेलता है और अनीतियां उजागर होने पर वह समाज का द्रोही बन जाता हैं। ऐसा सूझ बूझ का चयन समाज व संस्कृति को गर्त में डाल देता है क्योंकि ऐसे चयन सामान्य व्यक्ति को डरा देते हैं ओर वह हर साधु को अपने आंगन में नहीं बैठाता है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव तेरे स्वभाव से लोभ लालच हटा और देख अपने अन्दर बैठे साधु को, जो तुझे बार-बार समझा रहा है कि तू शुभ कर्म कर ले। तेरे से बडा साधु तुझे नहीं मिल पाएगा और तू अनावश्यक हस्तक्षेप करने से बच जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल