सबगुरु न्यूज। सृष्टि जगत में क्या क्या होगा और क्या नहीं होगा इसका हर विज्ञान केवल एक पूर्वानुमान ही लगा सकता है। असल में होगा क्या इसकी सत्यता घटना घटने के बाद ही मालूम पड़ती है।
घटना के बाद कई सावधानी बरतने की जरूरत समझते हुए नीति नियम व तौर तरीके अपनाए जाते हैं लेकिन प्रकृति हर दिन नई तरह की समस्या को लाकर व्यक्ति को हर बार नए कानून क़ायदे बनाने के लिए फिर से लगा देती है। प्रकृति के नियम व परिवर्तन की व्यवस्था मानव जीवन का शनैः शनैः समाप्त कर देतीं हैं और हर पीढ़ी तक मानव के साथ ऐसा ही होता है।
प्रकृति के कुछ निश्चित सिद्धांत हैं जिनके आधार पर जगत खडा है और दुनिया के हर विज्ञान उसी के बल पर जिन्दा है। लेकिन अनिश्चित सिद्धांत ही दुनिया को प्रतिक्षण बदल रहे हैं और वे ही किसी घटनाक्रम का मूल बन मानव के विज्ञान को बौना बना देते। इसलिए व्यक्ति प्रकृति से उलझता हैं तो प्रकृति अनजाने में ही निपटा देतीं है।
नास्तिक व परमात्मा की सत्ता को न मानने वाला मुस्करा जाता है और फिर प्रयास करने लग जाता है और वह व्यक्ति जो परमात्मा को मानता है वह इसे न्याय समझ कर फिर अच्छे से अच्छे तरीके से अपना भावी जीवन को सुरक्षित रखने का प्रयास करता है।
यह सब देखकर विज्ञान प्रयोग शाला तथा आस्थावान प्रकृति की शरण में चला जाता है फिर भी दोनों ही तरीके मानने वाले अनिश्चित होते हैं। प्रकृति ना जाने क्या क्या खेल कराए ये किसी को मालूम नहीं है उसकी गति वो ही जाने।
इसलिए प्रकृति आस्था वालों के देव बन गई ओर विज्ञान के लिए खोज। लाखों प्रयोग से एक ओषधि बनती है फिर भी सभी के लिए अचूक नहीं और लाखों आस्थावान आस्था से एक देव बनाते वो भी सभी के लिए सिद्ध नहीं होते।
सौजन्य : भंवरलाल