हे नाथ! पत्थरों को पूज पूज कर मैं धन्य हो गया। हे नाथ मुझे विश्वास है कि भले ही यह देव प्रतिमाएं मेरा भला ना करे लेकिन ये ना तो मेरा बुरा करेगी और ना ही मुझे धोखा देंगी क्योंकि ये बेजान ब्रह्मांड के पिंड गुणों में तेरे ही समान है।
पत्थरों में अपना मन नहीं होने के कारण इनमे सात्विक, राजसी ओर तामसी गुणों का स्वत ही संतुलन है। जबकि मानवी भगवान के पास मन होने से उनमें तत्वों का दोष आ जाता है।
आपने कभी ये नहीं कहा कि मेरी मूर्ति की पूजा कर, कभी आकर ये भी नहीं कहा कि इस पत्थर में मैं विराजित हूं। मानव ने जिस रूप में आस्था डाली ओर तेरी मूरत बनाकर श्रद्धा और विश्वास के साथ पूज ली। मैं भी तुझे इस रूप में भगवान् मान लिया।
हे नाथ मै सदैव ही धन्य हूं जो कभी कभार इन पत्थरों को श्रद्धा से पूजते पूजते पहाडों को भी पूज लेता हूं, जहां कुदरत ने अमूल्य औषधियां हमारे लिए उत्पन्न की है। इसलिए आदि ऋषि मुनि बताते हैं मृत संजीवनी बूटी भी दुर्लभ से सुलभ हो जाती है, हे नाथ, ये पत्थर साक्षात रूप से हमे सिर छिपाने के लिए गुफाएं, कन्द्राएं देते हैं।
हे नाथ! भले ही इन पत्थरों में आप बस्ते हो या नहीं इसे मुझे लेना देना नहीं पर इन पत्थरों में मेरा मन रमा हुआ है जिसे मै अपने मन की बात बताकर हल्का हो जाता हूूं क्योंकि मैं जानता हूं तुम मेरी बेबसी पर भले आंसू न बहाओ लेकिन जहरीली मुस्कान से मुसकराओगे नहीं, बस मुझे पत्थर पूजने का ईनाम मिल जाएगा।
हकीकत की दुनिया भी यही है कि हम आस्था से इन पत्थरों की मूरत से धोखा नहीं खा सकते है वरन अपने स्वार्थ सजने पर भी धोखा दे सकते हैं।
सौजन्य : भंवरलाल