सबगुरु न्यूज। पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि जगत की महालक्ष्मी रात भर विचरण करती है और जागने वालों को अपना आशीर्वाद देती है। एक गांव में जब लक्ष्मी जी सर्वत्र घूम घूम कर जागने वालों को धन प्रदान कर रही थी। लक्ष्मी जी ने देखा इस गांव के कुछ लोगों आनंद से सो रहे हैं यह सब कुछ जानते हुए भी। लक्ष्मी जी को उन पर दया आ गई और वह उन लोगों के घर की ओर निकल पडी लक्ष्मी जी ने आवाज दी।
कुछ लोग उठे और बोले आप कौन है और हम से क्या काम है। लक्ष्मी जी बोली मैं दैवी लक्ष्मी हूं और आज जो जागता है उसे मै धन देतीं हूं। ओर तुम लोग सो रहे हो। लोग बोले हे देवी हम खेती बाड़ी वाले लोग हैं और दिन को हम मेहनत करते हैं और रात को आराम से सो जाते हैं आपके पधारने का धन्यवाद। देवी आप किसी और जगह चलीं जाएं और हमें सोने दो।
लक्ष्मी जी भी अड गई और बोली क्यों, तुम्हें मेरी जरूरत नहीं है। एक वृद्ध व समझदार मजदूर बोला, मां सदियों से हम कर्जे में पैदा होते हैं, पलते हैं और इसी मे मर जाते हैं। हम मेहनत करते हैं आपकों लाने की तो आप अमीर व राजा के खज़ाने मे चली जाती हो।
हमारी जमीनें कभी बिक जाती है और कभी बेच दी जाती है। कभी शक्ति शाली कब्जा कर लेता है तो कभी राजा। हमारी फसल कभी बरसात खराब कर देती हैं तो कभी लागत से भी कम मूल्यों पर बेचनी पड़ती है। कभी जमीदार कर्ज वसूलने के लिये सस्ते में बलपूर्वक ले जाता है और नया कर्ज देकर देकर हमारा मसीहा बन जाता है।
गिरवी रखी जमीन पर हम सब मजदूर बन कर ही रह जाते हैं। फ़सल खराब भी होती हैं तो मुआवजा गिरीवी वाले को देना पड़ता भले ही कागजों में हम जमीन के मालिक ही क्यो न हो। ऐसी स्थिति में हम मज़दूरी मे ही बंटाईदार बन नुकसान खा कर पेट भी कर्ज से पालते हैं। दुनिया को हर चीज उपजा कर हम दे देते हैं और हमारी उपज को हम गिरवी या उधार से खरीद कर खाते हैं।
हे मां! दीवाली पर गन्ना, गुड ओर खांड हम तेरे लिए ही जी जान लगाकर उपजाते हैं ताकि जमाना तुझे राज़ी कर ले और हम नया कर्ज चढवा कर तेरी पूजा करते हैं कि मां इस बार फ़सल का जमाना ठीक करना।
तेरी बेरूखी का खामियाजा हम भुगतते हैं और फिर भारी कर्ज लेकर हम अपने परिवार को कर्ज में छोड़ कर मर जाते है। सदियों से ऐसा ही होता आ रहा है कि हम असली खेती बाड़ी वाले अपने श्रम से तुझे पूजते हैं और तू राजा के खज़ाने मे चली जाती है।
इसलिए मां हम आपके लिए दीपावली के दिन जागते रहेंगे अभी आप कृपा करके कही भी चली जाएं और हमें आराम से सोने दे ताकि कल हमारा श्रम सफ़ल हो। यह सुनकर लक्ष्मी जी मुस्करा कर चली गई।
संत जन कहते हैं कि ये मानव श्रम से ही लक्ष्मी जी की कृपा होती है। इसलिए मानव कल्याण के लिए लिए तू जमीन से फसलों को ही उगने दे उसमें महल मत उगा ताकि मानव सभ्यता में कृषि अपना योगदान दे इसे सुखी व समृद्ध बना सके और महलों को महलों के अनुकूल धरती पर ही बना सके।
सौजन्य : भंवरलाल