सबगुरु न्यूज। स्वार्थ के युद्ध में विकास की नदियां किनारों की ओर धकेल दी जाती हैं तथा विकास किनारे की मिट्टी में मिल जाता है, विकास का योद्धा हर तरह की रणनीति से स्वार्थ का युद्ध जीतने में लग जाता है और अपने विरोधी को विकास के विरोध में उलझा खुद विखंडन की नीति को अपनाता हुआ समाज व संस्कृति को संघर्ष की राह में डालकर अपना पक्षधर बनाने के प्रयास में लग जाता है।
गुमराह होता हुआ समाज अपने आप को विखंडन के मार्ग की ओर ले जाता है, फलस्वरूप पुरूष, स्त्री, बच्चे आदि सभी जाति, भाषा, लिंगभेद, रंग और वर्गों जैसी परिभाषा में उलझ कर संघर्ष करने लग जाते हैं। विकास की नदियाों में पानी सूख जाता है, विकास मायूस होकर भविष्य के लिए फिर अपने नए विकास पुरूष को खोजने निकल पडता है। उसका हर विकास पुरूष हर बार उसे धोखा देकर अपने स्वार्थ युद्ध को जीतने मे लग जाता है।
सदियों से विकास ओर विकास पुरूष की यही कहानी रही है। विकास हर बार शंतरज के अकेले बादशाह की तरह अकेला रह जाता है और जब तक बच सकता है बचता रहता है, अंत में हार जाता है।
प्राचीन काल में एक राजा विकास पुरूष बन हर तरह के विकास के नग्मे गाता था और हर गांव ढाणी मजरे में विकास के इश्तिहार लगाकर विकास के कार्य कराता था। एक बार विरोधी राजा ने युद्ध में उसके एक गांव को काफ़ी क्षति पहुंचा दी।
उस गांव के साठ फीसदी दुर्बल लोग त्राहि त्राहि करने लग गए। भूख प्यास से कई मर गए। रूपए ओर रोजगार के लिए तरस गए ओर सडकों पर आ गए।
तीस फीसदी बलशाली लोग अन्यत्र गांव में बसी अपनी मकान संपति में अपने नए रोजगार में लग गए ओर दस फीसदी लोगों परम बलशाली थे वे सब निहाल हो गए। कारण उन्हें तबाही के बाद विकास के रोजगार भारी मात्रा मे मिल गए। दुर्बल कर्ज में फंस गया और मध्यम ने येन केन प्रकारेण अपना गुजारा कर लिया। विकास के ठेकेदार ने अमानत राशि खा दिवालिया घोषित कर दिया।
यह कहानी देख विकास की आंखों से आंसू बह निकले ओर विकास का राजा भावी युद्ध की रणनीति में लग गया।
संत जन कहते हैं कि हे, मानव पाताल की लक्ष्मी दानव राज बली ने दान में वामन अवतार को कर दी तो लक्ष्मी धन तेरस को स्वतंत्र हो गई और बदले में प्रसन्न होकर विष्णु भगवान राजा बलि के पाताल में चौकीदार बन गए, पाताल लोक निहाल हो गया।
इसलिए हे मानव जब तक व्यक्ति में त्याग की भावना नहीं होगी तब तक वह विकास नहीं कर सकता केवल। तू त्याग की भावना रख, सबका विकास हो जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल