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मारण मटकों पर महाकाल की बंदिश - Sabguru News
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मारण मटकों पर महाकाल की बंदिश

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मारण मटकों पर महाकाल की बंदिश

सबगुरु न्यूज। विचारधारा कोई भी क्यों न हो वह मानव को अपने सिद्धांतों और सही राह पर चलने का निर्देश देती हैं, उन्हीं विचारधारा के मूल्य अपनी ही तरह की सभ्यता और संस्कृति का निर्माण कर अपने आप को स्थापित करने के लिए सदा प्रयास करते आ रहे हैं।

हर विचारधारा को जन्म ओर मुत्यु के दौर से गुज़रना पड़ता है। जब विचार धारा जन्म और मुत्यु के दौर से गुजर कर वर्ग संघर्ष कराने के लिए काल का रूप धारण कर लेती है तब प्रकृति महाकाल का रूप धारण कर जीव ओर जगत को खुली चुनौती देती हुई हर क्षेत्र की आक्रमकता को संघर्ष की बंदिश से बांध देती हैं।

यह संघर्ष नए परिवर्तन को स्वत: ही जन्म दे देता है और हर विचारधारा औंधे मुंह गिरकर अपनी बरबादी पर आंसू बहाती है। सदियों से ऐसा ही होता आया है।

तंत्रों की दुनिया के विज्ञान की विचारधारा मौत के मटके को उड़ाकर समस्या को जड़ मूल से हटा देती हैं तथा अपने विरोधी को काल के मुंह में डाल देतीं हैं। अथर्ववेद और अग्नि पुराण तथा हजारों तंत्र ग्रंथों में इनका उल्लेख किया है।

प्राचीन काल से आज तक यह सब अंधविश्वास के रूप मे भले ही मानी जाती है लेकिन प्राचीन ग्रंथों में इनका उल्लेख भी कोई कोरी कल्पना नहीं हो सकती हैं। हो सकता है कि आज ये विज्ञान लोप हो गया हो। अन्यथा महाकाल ओर महाकाली और बंजरग बली जैसी शक्तियां प्रकट होती।

मानव केवल मानव की बनायीं सभ्यता और संस्कृति के कार्यो पर रोक लगा सकता है लेकिन प्रकृति के कार्यो में हस्तक्षेप कर बंदिश लगा देने में वह सक्षम नहीं बन सका। प्रकृति की हवा, पानी और सूरज की रोशनी पर बंदिश लगाने वाले को काल उठाकर ले जाता है और यहां महाकाल भी बंदिश नहीं लगाता।

मानव सभ्यता और संस्कृति को कुचलने के लिए कोई विचारधारा जब सभी और से मौत के मारण मटकों को छोड़ती है, तब महाकाल उस महातबाही को रोकने के लिए बंदिश लगा प्रकृति का श्रेष्ठ हितैषी और परम न्यायाधीश बन जीव ओर जगत को अपना अस्तित्व दिखा कर अपनी श्रेष्ठता साबित कर देता है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव तू सत्य के मार्ग की विचारधारा का अनुसरण कर और तेरे मार्ग में आने वाली हर बाधा स्वत: ही दूर हो जाएगी। दुनिया की बंदिश तूझे मार नहीं पाएंगी। यहां तक की तंत्रों की दुनियां में किए गए मारण मटकों के प्रयोग पर महाकाल बंदिश लगा देंगे।

सौजन्य : भंवरलाल