सबगुरु न्यूज। संस्कृति की परछाईयां सदा विशाल कद की होती है क्योंकि संस्कृति की कद काठी स्वयं विशाल आकार की होती है। विश्व की हर सभ्यता और संस्कृति केवल अपने आकार की विशालता के कारण ही आज तक जीवंत हैं। उस सभ्यता और संस्कृति ने अभौतिक ओर भौतिक दोनों ही क्षेत्रों में विकास के परम आयामों को छू लिया था ओर जहां हर हर क्षेत्र की सत्यता को स्वीकारा जाता था और जमीन पर अंजाम को पाया जाता था।
संस्कृति निर्माण किसी व्यक्ति विशेष की या समुदाय विशेष की जागीर नहीं होतीं और ना ही पक्ष विपक्ष जैसी धारणा का उसमें कोई महत्व होता है। उस काल का दर्शन स्याही की दवात में पक्षपाती क़लम डुबोकर नहीं लिखता था। इस कारण विद्वानों में मतभेद अपने सिद्धांतों की पुष्टि के लिए जरूर हुए लेकिन मनभेद नहीं होने से अपने हर सिद्धान्त अपने फल पर आज तक जी रहे हैं और सदियों तक जीवंत रहेंगे।
आज भी विश्व समुदाय में विज्ञान व दर्शन की विचारधारा के विद्वान सत्य की क़लम और अमिट स्याही से एक संस्कृति निर्माण करते हैं,भले ही आज की व्यवस्थाएं उनको कुचल दे या अपमानित करे तो भी समाज में शनै शनै वे गहरी जड़ें जमा लेते हैं तथा आने वाले कल की नई क्रांति के कर्णधार बन जाते है। जन समुदाय का इनको भरपूर आदर मिलता है और ये ही सही मायने मे खुद संस्कृति के आकार को बड़ा कर उनकी परछाईयों का कद ऊंचा कर देते हैं।
संकुचित स्याही की दवात और बोनी क़लम जब अक्षरों को लिखने का अंजाम देतीं हैं तो वह उछल कूद ज्यादा मचाती है और अपने आधारहीन भवन को तरह तरह से सजा उसे महिमा मंडित कर अपने “शैतानी दर्शन” को सर्वत्र जमाने के लिए एक समूह बनाकर अपना विजयी शंखनाद युद्ध होने से पहले ही बजा देती है।
जन समुदाय को गुमराह कर उसको मुख्य मार्ग से हटा झूठ की पंगडंडियों की तरफ मोड़ देती है और कांटों की राह पर चलता समुदाय शर्म से कुछ बोल नहीं पाता। यहीं हालात स्वयं संस्कृति की परछाईयों को बोना बना देते है और भूमिका संघर्ष शुरू हो जाता है।
संत जन कहते है कि हे मानव बौनी संस्कृति का ये मानव अपने आकार को बढ़ाने का असफल प्रयास करता है और आसमां के सूरज की ओर सर्च लाईट फेंकता हैं। सूरज की धरती पर क्या हो रहा हैं यह बताने की बात कहता है। यहीं संस्कृति का बौनापन मूल संस्कृति की परछाईयों को बौना बना देता है। इसलिए हे मानव, प्रकृति की विरासत में दी गई संस्कृति को ग्रहण कर, तेरी परछाईयां सदा विशाल कद की होगी।
सौजन्य : भंवरलाल