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सांचा एक था, मूरत बदलती रही - Sabguru News
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सांचा एक था, मूरत बदलती रही

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सांचा एक था, मूरत बदलती रही

सबगुरु न्यूज। शहर के बाहर खेती की जमीन थी। राजा ने भावी विकास के दृष्टिकोण से उसे अधिग्रहित कर लिया। दूसरी ओर जो जमीन थी वह कम उपजाऊ थी तथा पानी की कमी थी। वहां फसल का लागत मूल्य बढ जाता था।

अपनी खेती के लिए बीज, खाद, कृषि के आवश्यक औजार तथा मजदूरों के लिए भी धन की व्यवस्था महाजन या बैंक से उधार लेकर ही की जाती थी। कम रकबा होने के कारण जो भी फसल पैदा होती थीं उसका लागत मूल्य भी नहीं मिलता था।

जो फ़सल पैदा होती उसमें से घर पर साल भर का अनाज, दान पुण्य का अनाज, अपने ही लोगों को कुछ भेजा गया उपहार स्वरूप रूपी अनाज, अगली फसल के लिए रखा गया बीज इन सब को कुल फ़सल में से ही दिया जाता हैं। शेष फसल को बाजार में बेचने से जो रूपया मिलता था वह फसल के उपजाने की लागत का आधा ही नहीं आता था।

हर साल ऐसी स्थिति होने के कारण हम लगातार ऋणी होते जा रहे हैं यहा तक की हमारे अन्य सामाजिक कार्य करने के लिए भी धन उधार लेना पडता है और हम फसल का बीमा भी करा लें तो भी फ़सल की लागत ज्यादा होने से हम नुकसान में ही रहते हैं।

हे नाथ मै तेरे मंदिर में इसलिए आया हूं कि अब मैं दूसरा काम धंधा शुरू करूं। इससे पहले मैं तेरा आशीर्वाद ले लूं। मैं केवल मिट्टी की मूरत बनाना ही जानता हूं ओर वही काम करूंगा। मेरे पास एक ही मूरत बनाने का सांचा है तथा दूसरे सांचे के लिए कर्ज लेना पडेगा।

किसान की यह सब बातें मंदिर के पिछवाड़े बैठा एक संत सुन रहा था। संत को दया आई उसने उस व्यक्ति को वरदान दिया कि तेरे पास एक सांचा है उसी से कोई भी मूरत बन जाएंगी। संत का वरदान लेकर वह व्यक्ति खुश होकर चला गया। जहां भी मैले भरते थे वह सब जगह जाकर लोगों की पसंद की हर मूर्त बना कर देता देता धनाढय हो गया।

एक बार एक व्यापारी लाखों मूरत रावण की दशहरे के लिए बनवाने आ गया। उस सांचे में उस व्यक्ति से रावण नहीं बना। मामला मोटे लाभ का था। वह व्यक्ति वापस संत के पास गया और अपनी समस्या बताई।

संत मुस्करा कर कहने लगे बेटा इस सांचे का वरदान मैंने बहुत सोच कर दिया है, इस सांचे को रावण बनाने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि यह सांचा रावण की ही माया है और रावण बेचा नहीं जा सकता। वजह यह है कि आज के रावण सब कुछ खरीद लेते हैं पर बिकते नहीं है। यह कहते कहते संत लोप हो गए ओर वह व्यक्ति मुस्कुरा कर चल दिया।

संत जन कहते हैं कि हे मानव ये कलयुग रावण से ही श्रापित है तथा सर्वत्र वह अपने अवगुण बिखेर गया है। इसलिए तू तेरे मन में रावण का अवगुण मत आने दे। श्रम कर, सभी के कल्याण के लिए तुझे आनंद आएगा।

सौजन्य : भंवरलाल