सबगुरु न्यूज। रहम के सवेरे के प्रकाश की जगह जब बेरहमी की आग का उजाला हो जाता है तो उस उजाले में सब कुछ जलकर राख हो जाता है। धर्म, संस्कृति, समाज, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और वैज्ञानिक सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था भी पंगु होकर लडखडा जाती है क्योंकि जब बेरहमी की रात शुरू होती है तो वह एक अंधा प्रकाश विरासत में लेकर आती है।
जिस युग में मानव का मूल्य खत्म हो जाता है और बालक बालिका जो बाल देवी देवताओं के रूप होते हैं उन पर हर किस्म के जुल्म ढाए जाते हैं। पग पग पर भय से कांपते बाल भगवान, क्या करें, जब कि उन्हें सहायता व सुरक्षा की जरूरत होती है।
महिलाओं को जहां दिन दहाडे अपमान सहने पड़ते हैं तो रात के अंधेरे में उनका क्या हश्र होता है। जहां बुजुर्ग बेसहारा गरीब को ही लूट लिया जाता है। जहां सत्य डरा हुआ बन्द कमरों में आंसू बहाता हो। ये सारी ये स्थितियां बयां करती है कि अब बेरहम युग की शुरूआत हो गई।
इस बेरहम युग की सुबह बहुत अंधी होती है, जो दिन के प्रकाश पर ग्रहण लगा देती हैं और रातों को काले इतिहास का निर्माण कर तमाम दया और करूंणा के पन्नों पर काला रंग फेर देती है तथा सर्वत्र नफ़रत का पर्दा डाल देती है।
इस बेरहम युग की शुरूआत भी मानव ही करता है। स्वार्थ की मैली और क्रूरता से सनी चादर ओढकर मानव जब अपने हितों को साधने का काम करता है तो येन केन प्रकारेण उसे किसी भी स्तर पर क्यों ना जाना पडे वह पहुंच जाता है, यहीं से समाज में बेरहमी के युग की गंदी शुरूआत हो जाती हैं।
इस धारा में फ़िर एक नहीं अनेक लोग अलग-अलग ढंग से सभी संस्थाओं से एक भारी समूह बना कर निकलते हैं। यह समूह फिर सच्चाई पर प्रहार कर झूठ का साम्राज्य स्थापित कर देते हैं और समाज को गुमराह कर अपने हितों को साधते हैं।
धर्म, संस्कृति, समाज, आर्थिक राजनिती व जन जागरण से जुड़ी कुछ विशेष संस्थाएं जब अपने हितों को साधने में लगतीं है तो वे बेरहम होने लगती है। फिर सर्वत्र ये अपना परचम लहरा कर एक गमगीन सवेरे का उदय करती हैं और दिन भर सभी क्षेत्रों में ग्रहण लगा देती हैं। रात को काला इतिहास लिखती हैं। यही जमीनी स्तर पर हकीकत होती हैं अन्यथा बेरहम युग की शुरूआत नहीं होती और ना ही कोई अपराध पनपता।
बेरहम होकर जब देवराज इन्द्र ने गोवर्धन पर्वत पर मूसलाधार वर्षा की थी तब उस तबाही को योगी राज कृष्ण ने स्वयं संभाला और जन धन की क्षति होने से बचाया। इस तरह से हाथों हाथ बेरहमी के युग की गंदी शुरूआत और बदले की भावना को श्रीकृष्ण ने रोक कर सभ्यता और संस्कृति को बचाया।
संत जन कहते हैं कि हे मानव जब तक अपने स्वार्थो को साधने में ही मानव लगा रहेगा तो यह बेरहमी युग फलता फूलता रहेगा और बालक बालिकाओं, नारी नर, बुजुर्ग, बेसहारा, गरीब ये सभी इस युग में हर दिन शिकार बनते रहेंगे। इसलिए हे मानव तू इन फरेबी मसीहाओं के जाल में अपने क्षणिक लाभ के लिए मत फंस, अन्यथा तेरा अंजाम भी एकदिन ऐसा ही होगा।
इसलिए तू सत्य के मार्ग की ओर बढ़ तथा सर्वत्र अपना सहयोग मानवता को प्रदान कर। तू अकेला ही इस दुनिया में जीत जाएगा और बेरहमी युग के अंधे सवेरे को खत्म कर देगा।
सौजन्य : भंवरलाल