सबगुरु न्यूज। लगता है कि किसी तांत्रिक की शमशान साधना फ़ैल हो गई है और सारी मृत आत्माएं असंतुष्ट होकर अपनी बिगड़ी तस्वीरों की देख मानव को दंड देने को उतारू हैं। तांत्रिक उस आत्मा को शांत करने के लिए सर्वत्र शांति यज्ञ कर रहा है फ़िर भी आत्माए हाहाकार मचा रही हैं और यह संदेश मानव को दे रही हैं कि हे मानव तू तो देखकर चल हम भी कभी इंसान थे।
काल चक्र आगे बढता हुआ सभ्यता और संस्कृति की एक कहानी छोड़ जाता है, काल एक मूक गवाह बना जाता है। यह मूक गवाह कुछ बोल नहीं पाता है और सभ्यता ओर संस्कृति के बचे अवशेषों से एक जिज्ञासु उसकी एक कहानी लिखता है। कालांतर में उसे इतिहास के नाम से जाना जाता है।
कई बार घटनाक्रम के समय कोई व्यक्ति इनका दृष्टा होता है तो वह आंखों देखा हाल लिख जाता है। उस समय दूर से सुनने वाला भी उसका चित्रण करता है। पक्ष और विपक्ष में लिखने वाले भी उस घटनाक्रम को अपने अपने दृष्टिकोण से लिखते हैं लेकिन घटनाक्रम की मूल कथा वही रहती है।
घटनाक्रम के कई सालों बाद कुछ विद्वान अपनी कला व साहित्यिक अंलकारों से इतिहास फिर लिखता है तो उसकी मूल भावना तो वही रहती हैं लेकिन उसकी लेखन कला कुछ बातों को अपने विवेक से लिख देती है। इनमें से कुछ घटनाक्रम के हिमायती व कुछ विरोधी बनकर मूल इतिहास को बिगाड़ कर एक नई शक्ल उसे देते हैं।
इतिहास की यह शक्ल ही अनावश्यक विवाद का कारण बन जाती है और एक सांस्कृतिक आतंकवाद को जन्म देकर समाज को संघर्ष की राह में धकेल देती है।
बीता हुआ कल और उसका इतिहास तो बोलता नहीं, लेकिन यह सांस्कृतिक आतंकवाद ऐसा लगता है जैसे कि किसी तांत्रिक की श्मशान साधना असफल हो गई है। सारी मृत आत्माएं हाहाकार मचा रही हैं कि हे नादान तूने हमें गहरी नींद में से अकारण अपने स्वार्थ के लिए जगा दिया है। इस रूप में आई ये आत्माएं जब अपने गत इतिहास को बिगडा हुआ देखतीं हैं तो वे भी विकराल होकर चारों तरफ संघर्ष करा सभी को दंड देतीं हैं।
तंत्र ग्रंथों में कई तरह की साधना और सिद्धी की जानकारी मिलती है। इन साधनाओं में श्मशान साधना को विशेष स्थान दिया गया है। श्मशान में तंत्र के जानकार विशेष समय और विशेष रात में हवन करते हैं। कहा जाता है कि उस समय श्मशान में जलाए तथा गाडे गए शवों की आत्माएं वहां प्रकट होतीं हैं और तांत्रिक को अपनी इच्छित सिद्धी प्रदान करतीं हैं।
लेकिन जब यह आत्माएं असंतुष्ट होतीं हैं तो सर्वत्र अपना प्रकोप फैलाती है। विज्ञान इसे अंधविश्वास मानता है और वास्तविकता परमात्मा ही जानता।
संत जन कहते हैं कि हे मानव तू स्वयं तू आत्मा के कारण ही जिन्दा हैं इसलिए शरीर में बैठे इस महामानव की बात सुन तथा क्षणिक लाभ के लिए इनका अपमान मत कर। मन के घोड़े की लगाम को सत्य की डोर से बांधे रख। इसी में भावी कल्याण का मार्ग है। तेरी कला और संस्कृति इस आत्मा से नीचे है। अत: इस आत्मा का अपमान मत कर और उसे चैन से रहने दे नहीं तो तेरे जीवन का सब सुख चैन छीन जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल