सबगुरु न्यूज। तेरा शुक्र है परमात्मा, जो मेरे शरीर में अमृत कुंड डाल कर भी मुझे अमर नहीं रहने दिया और श्रीराम के हाथों मुझे मौत के घाट उतरवा दिया। काश मैं जिन्दा रहता तो आज की दुनिया को जलते हुए नहीं देख सकता था।
हे नाथ, तेरा रावण धन्य हो गया। मेरी मौत श्रीराम के हाथों से हुई थी इसलिए मेरा मोक्ष हो गया। अब मेरी आत्मा जब स्वर्ग से इस दुनिया के नजारे देखती हैं तो हैरान हो जाती है कि उस मृत्यु लोक में यह क्या हो रहा हैं।
हे नाथ, मेरे समय का मृत्यु लोक कलयुगी ना था और संस्कृति की महिमा भी परवान पर थीं।देव, दानव और मानव सभी सभ्यता और संस्कृति में एक खुला मुकाबला था। वे एक दूसरे को नीचा दिखाने का नहीं वरन् अपना अस्तित्व साबित करने के लिए था। भले ही हमारी संस्कृतियां विरोधी रहीं लेकिन फिर भी हम सब एक नियम क़ायदे क़ानून के तहत ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर राज करते थे।
हे नाथ, आज अहंकार के नगाड़े सर्वत्र बज रहें हैं। समाज, धर्म, संस्कृति आर्थिक पक्ष, राजनीतिक सत्ता, विज्ञान इन सभी क्षेत्रों में संस्कृति के मूल्य ओर आधार बदल चुके हैं। छल, कपट, झूठ, फरेब एक महाशक्तियों की तरह अपना प्रचार प्रसार कर जन मानस को कुचल कर अपने साम्राज्य को बढाते ही चले जा रहे हैं। मानव मूल्यों की संस्कृति दुनिया में असहाय बन उस पाताल को ढूंढ रही है जहां कभी दानव निवास करते थे, कारण वो पाताल के दानव भी परमात्मा और न्याय से डरते थे।
संस्कृति को कुचलने वाला अहंकार आज भी अपनी अहंकारी संस्कृति को बचाने की कवायद में जुटा हुआ है। जमीन की संस्कृति को ठुकराते हुए ये अंहकारी, चांद सितारों में खोयी हुई संस्कृति को ढूंढने के नाकाम प्रयास कर एक ऐसे मायावी राम का निर्माण कर रहे हैं जो धनुष बाणों से नहीं वरन् अपनी शक्ति का प्रदर्शन ओछे हतकंडों से कर घृणा ओर नफ़रत के बम विस्फोट कर इस समाज और संस्कृति को विष सागर में डाल खुद माया रूपी अमृतपान करनें में इकट्ठे होते जा रहे हैं।
हे नाथ! जब मैं राम के हाथों से मर रहा था तो मैं बहुत खुश था कि अब बचे खुचे रावण और उस की एक गलत सोच भी मर जाएगी और सर्वत्र मानव सभ्यता ओर संस्कृति का खूबसूरत जीर्णोद्धार हो जाएगा। लेकिन कई वर्षों बाद जब मे उस युग की संस्कृति ओर राम के बारे मे सोचता हूं तो मै अपने आप को भाग्यशाली मानता हूं कि मेरा राम तो वास्तव में मोक्ष दाता था और आज जो राम बनने की कवायद में है वे सब तो मुझ से भी ज्यादा खतरनाक हैं और सर्वत्र मायावी सीता का हरण करने मे जुटे हुए हैं और फिर भी संस्कृति का बखान कर रहे।
संत जन कहते है कि हे मानव, जो रावण मानव सभ्यता और संस्कृति का विरोधी था पर उसके भी अपने सिद्धांत थे। उसकी आत्मा आज जिन हालातों को देखती है तो वो रो पड़ती कि हे राम इस दुनिया में यह लूट कसोट, हाहाकार, अत्याचार, पीड़ित होती महिलाओं ओर बच्चों की रक्षा करने वाला, मानव संसाधन विकास को खत्म करता आतंकवाद छल कपट झूठ फरेब लालच ओर अंहकार। आखिर यह सब कोन बचायेगा क्यो कि सब तो केवल अपने को ही बचाने मे लगे हुए हैं।
इसलिए हे मानव तू फिर भी अपने कर्म को बखूबी से अंजाम दे ओर झूठे ओर बडबडाते हुए कर्म से दूर रह, नहीं तो यह सब ग़लत लोग एक सोची समझी रणनीति की क़लम से सच को झूठ, गवाह की संख्या के आधार पर कर जाएंगे और मानव सभ्यता और संस्कृति को सदैव कुचलते रहेंगे।
सौजन्य : भंवरलाल