सबगुरु न्यूज। विश्व के बाजारों में सर्वत्र मैली लक्ष्मी का ही साम्राज्य होता है और वहां पर ऊजली लक्ष्मी के केवल चरण ही दिखाई देते हैं। बाजारों में मुद्रा इस क़दर फैल जाती है कि बाजार की हर वस्तु के लाखों खरीददार आसानी से मिल जाते हैं और यहीं लक्ष्मी अपना मैला रूप धारण कर उन लोगों के घरों में प्रवेश करतीं हैं जो उजले मकानों में रहते हैं। कारण ऐसे घरों के स्वामी ही इस लक्ष्मी के उपासक होते हैं अर्थात जो येन केन प्रकारेण किसी भी तरह से धन कमा कर उस धन का संचय करते हैं।
बाजारों में इस तरह की चहल पहल अनावश्यक रूप से विकास की दर बढा देती हैं क्योंकि बाजार में बेचे जाने वाले उत्पाद भी मैले होते हैं अर्थात हर माल नकली बनकर बाजार में बिक सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि कर देता है। यह लक्ष्मी सारे बाजार को मैला कर अपना वर्चस्व स्थापित कर लेती हैं। असली उत्पाद बाजारों में सडता है, जिन्हें मैली लक्ष्मी अपने आंचल में समेट कर ले जातीं है और अपनी झोली से मैली मुद्राएं उसे देकर चली जाती है।
पूरी कहानी में मैली लक्ष्मी जमीन और ज़मीन से बाहर हर वस्तु व सेवा को खरीदकर विक्रेता को मेले सिक्के देकर चलीं जातीं हैं। इन असली वस्तुओं को विश्व के बाजारों में बेच श्वेत चरण बना विश्व में ही रह जातीं हैं। मैली लक्ष्मी फिर वापस आकर अपना खेल खेलकर सम्पूर्ण बाजार में रह जाती हैं। इस तरह से विश्व बाजारों मे ऊजली और अपनें देश में वो मैली बने रहती है। देश में वह अपना साम्राज्य बना विकास को मैला बना देती हैं।
यह दर्शन शास्त्र की व्याख्या नही वरन् अर्थ तंत्र की हकीकत होती है जिन्हें अर्थशास्त्री जानते हुए भी विकास के गुणगान करते हैं जिस विकास का आधार ही मैली लक्ष्मी होती हैं। कथाओं में वर्णन मिलता है कि लक्ष्मी जी की बड़ी बहन अलक्षमी थी जिसे दरिद्रा कहा जाता है। उसे सात्विकता बिलकुल बर्दाश्त नहीं है। जहां नियमित लडाई, झगड़े, अधर्म और ग़लत कर्म होते हैं वहां पर ही उसका निवास होता है।
लक्ष्मी जी के कहने पर श्रीविष्णु भगवान ने उसकी शादी एक ऋषि से करवा दी। ऋषि आश्रम में जैसे ही वेद ध्वनियां और भजन कीर्तन होने लगे तो अलक्षमी जोर जोर से चिल्ला कर रोने लगी कि मै इस माहौल में नहीं रह सकतीं। तुरंत यह सब सत्य और धार्मिक विचार, प्रेम, भाईचारा हटा दो। मैं तो केवल लूट, कपट, झूठ, फरेब, लालच और अंहकार मे ही रह सकतीं हूं।
मैली लक्ष्मी के यह हाल देख ऋषि बोले हे दैवी तुम यहीं प्रतीक्षा करो, मैं वह स्थान ढूंढ कर आता हूं जो आपके लिए ठीक हो। यह कह कर ऋषि वहां से चले गए और दोबारा वापस नहीं आए।
संत जन कहते हैं कि हे मानव जहां सत्य कर्म, मानव प्रेम, सेवा, कल्याण होता है वहां सदैव ऊजली लक्ष्मी के क़दम होते हैं और वहां स्थायी रूप से विकास होता रहता है और संस्कृति को नीचा नहीं देखना पड़ता है, लेकिन जहां लूट खसोट, हाहाकार, अत्याचार होता है, अधर्म से ही सब काम होते हैं वहां पर मैली लक्ष्मी ही निवास करतीं हैं जो मानव मानव मे बैर करा देतीं हैं।
इसलिए हे मानव तू सकारात्मक सोच से ही कर्म कर ताकि लक्ष्मी के सफेद चरण तेरे घर में प्रवेश कर सभ्यता और संस्कृति को सदैव ख़ुशहाल करते रहेंगे।
सौजन्य : भंवरलाल