सबगुरु न्यूज। हे सृष्टि के परम अध्यक्ष तुझे शत शत नमन। हे नाथ, इस संसार की सत्ता तेरी है और तू कभी भी किसी से नहीं रूठता। कारण तेरे रूठने से यह नश्वर जगत ही समाप्त हो जाएगा। तूने सदा ही जीव के लिए बनाने का काम किया है।
यह तो जीव का ही स्वभाव है कि वह अपने को सर्वशक्तिमान समझ कर तेरे अधिकारों में अतिक्रमण करने लग जाता है और कुछ ही काल बाद रावण, कंस और दुर्योधन की तरह धराशायी हो जाता है, इसके बाद छोड़ जाता है उस इतिहास को जिसे आने वाले कल में भी, वह प्रकृति के विरूद्ध कार्यवाही करने वाला एक मात्र अतिक्रमी ही माना जाता है।
जगत का हर क्षेत्र तेरा है और मानव को जन्म देकर तूने उसे अपने अधिकार और कर्तव्य से नवाजा है, एक अदृश्य निरीक्षक की तरह उसका निरीक्षण कर उसे अपने किए गए कर्म का पुरस्कार या दंड दिलाता है। यहां पर भी यदि मनमानी मानव कर जाता है तो तेरी अदृश्य लाठी जब उस पर पड़ती है तो वह सब कुछ भूल जाता है कि वह किस सत्ता का मालिक है।
किसी भी शासन को सामाजिक आर्थिक, राजनीतिक और करिश्माई सत्ता चलाती है। करिश्माई सत्ता में उन लोगों को माना जाता है जो व्यक्ति अकेला अपने दम पर सत्ता को प्रभावित कर देता है और दूसरा प्रेस। यह चारों सत्ताएं भी जब मनमानी को धारण कर लेती हैं तब हे नाथ तेरा असाधारण करिश्मा इन सब को विकट स्थिति में डाल सब में भय पैदा कर देता है और एक नए वातावरण का निर्माण कर तू नई व्यवस्था बना देता है।
सदियों से इस कहानी को देख कर भी ये चारों तत्व लोभ, लालच, झूठ, फरेब व अहंकार कर अपने को ही सर्वशक्तिमान समझ कर अधिकारों का दुरूपयोग करते हैं और फिर धराशायी हो जाते है, दर दर भटकते रहते हैं।
आकाश से गिरने वाली ओलावृष्टि और कड़क कर जमीन पर गिरने वाली बिजली कभी इस बात की परवाह नहीं करती है कि मेरी हरक़त से यह जगत रूठा हुआ है या नहीं। अपने शाश्वत गुणों का प्रस्तुतीकरण केवल कुदरत ही करती है क्योंकि उस पर नाम की उपाधि थोपी नहीं गई है और ना ही अपने प्रयासों से उसने पाई है। उसे कुदरत ने पैदा किया ओर वह उन गुणों को ही प्रकाशित करती हैं क्यो उसके प्रकाशन के नियम में वह मनमानी नहीं कर सकतीं।
मनमाना व्यवहार तो एक मनोवृत्ति होतीं हैं जो मानव समाज व पशु समाज में ही पाई जाती है। इन्हीं कारण से इनका उत्थान और पतन होता रहता है जबकि प्रकृति अपने स्वभाव से ही अपने कार्यो को करती है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव यदि तेरे पास कोई अधिकार है तो तू अहंकार में अंधा मत हो, क्योंकि अहंकारी व धोखेबाज का अंत कुदरत किसी न किसी बहाने कर देती हैं। इसलिए हे मानव तू मानव अधिकारों का ही प्रयोग कर जिस में जन कल्याण निहित हो।
सौजन्य : भंवरलाल