सबगुरु न्यूज। निराश जीवन में जो आशा का संचार करता है। देवता, दानव और मानव यह सभी उसी के वशीभूत होकर अति आनंदित होते हैं और उसी कारण प्राणी सजीव व निर्जीव वस्तुओं से प्रेम, आस्था तथा श्रद्धा भक्ति कर अपने जीवन को सफल बनाते हैं। बिना उसके किसी का भी गुजारा नहीं चलता है, उसे प्रेम ही कहा जाता है।
जो प्राणी झूठे अभिमान, शान शौकत ओर अहम में जीते हैं और जिनमें अपने हित व स्वार्थ की बातें होती है, जो केवल अपनें और अपनों के बारे मे ही सोचते हैं, जो दूसरों के जीवन के मूल्यों व मापदंडों से सरोकार नहीं रखना चाहते उस बुद्धि की सोच में भी वह ही प्रेम बसा हुआ है।
हे मोहन तू वास्तव मे बांका है। तूने प्रेम की यह दो फाड़ क्यो बना दी। तेरे ही कारण कोई गृहस्थ त्याग साधु बन गया तो कोई स्वार्थी बन धृतराष्ट्र की तरह खुद कौरवो में ही समा गया।
इनमें भी मोहन केवल तुम्हारी ही आत्मा बसी है। लेकिन हे मोहन तेरे ये विरोधाभासी कार्य ने मानव को मानव का दुश्मन बनाकर जीवन और जगत में उस महाभारत के युद्ध को प्रारम्भ कर दिया जिसका अंत अनन्त काल तक भी खत्म नहीं हो सकता जबकि तेरा महाभारत युद्ध तो केवल अठारह दिनों में ही खत्म हो गया।
वास्तव मे मोहन तूने अर्जुन को भागवत में यही उपदेश दिया था कि है अर्जुन मैं अक्षरों में विस्तार हूं, वास्तव में तू एक ऐसा मायावी रहा जिसने “प्रेम” अक्षर का विस्तार कर समाज को दो हिस्सों में बांट दिया और अपने ही सुदर्शन से तू अपने शरणागत को नवाज रहा है और अपने प्रेमियों का सखा बन खूब माखन लूट कर बडी बेरहमी से तू उनकों बांट रहा है। हे मोहन तू वास्तव में बांका हैं।
हे मोहन तूने सही कहा कि मैं महिनों में “मार्गशीर्ष” हूं। इसलिए दुनिया को अपने कर्तव्य का बोध करा आगे शुरू होने वालीं पोष मास की ठंड आने से पहले ही शब्दों की गर्मी से तपा निष्काम कर्म कि उपदेश अर्जुन को दिया ओर तूने यह भी कह दिया कि हे अर्जुन–
मैं सबका नाश करने वाला “मृत्यु” भी मैं ही हूं। हे मोहन जब तुम साक्षात मृत्यु ही देने वाले हो तो फ़िर हमे ओर दुनिया को डर किस बात का। प्रेम चाहे त्याग के लिए हो या स्वार्थ के लिए तब हे मोहन दोनों ही इस जगत में विद्यमान ही रहेंगे।
संत जन कहते हैं कि हे मानव तू केवल त्याग के लिए ही प्रेम कर। तेरे प्रेम से तेरे प्रेमीजन गर्म जोश में रहेंगे और शरद ॠतु को भूल जाएंगे। इसलिए हे मानव तू सर्वत्र प्रेम की गंगा बहा जिस में स्नान करने से पोष की खाल कोस ठंड का असर नहीं होगा और गरीबों का तू रेन बसेरा बन जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल