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दैव मूर्तियां बोलीं काश धडकन में तेरे तड़पन जो मेरी होती - Sabguru News
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दैव मूर्तियां बोलीं काश धडकन में तेरे तड़पन जो मेरी होती

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दैव मूर्तियां बोलीं काश धडकन में तेरे तड़पन जो मेरी होती
satu behna temple joganiya dham pushkar
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सबगुरु न्यूज। देव मूर्तियां बोलीं, हे पुजारी जी देखो कितनी विचित्र बात है दुनिया की। जहां मैं हूं वहां पर मेरी मूरत से प्रेम करने वाला कोई भी नहीं दिखाई देता है और जहां मे नहीं हू वहां लोग शक्तिशाली लाठी लेकर एक दूसरे को मरने मारने के लिए ऊतारू हो रहे हैं और वे मेरे अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं।

हे प्रभो अब तुम ही बताओ क्योकि तुम तो हर रोज मेरी मूरत की उपासना करते हो। क्या तुमको मैं इन मूरत में कभी नजर आया या कभी नजर आऊंगा। आप यही कहोगे कि भगवान मूर्ति में हम हमारी आस्था की आकृति ही देखते हैं, जमीनी हकीकत में आप कभी नजर नहीं आए।

आपने बिलकुल सही कहा पंडित जी, मैं केवल आस्था और श्रद्धा में ही निवास करता हूं, किसी स्थान विशेष या मूर्ति विशेष में नहीं। मैं ही संसार के हर कण कण में समाया हूं और मैं ही हर जीव, जन्तु और जगत तथा धर्मों में प्रवेश कर अलग-अलग ढंग से नवाजा जाता हूं। हे पुजारी जी मैं बहुत हैरान हो जाता हूं जब लोग मेरे एक रूप को पूजते हैं और दूसरे रूप को घृणा व नफ़रत की तरह देखते हैं। तुम एक जगह मुझे पूजते हो और दूसरी जगह अपमान करते हो।

हे पंडित जी जाति, वर्ग, समाज और धर्म मेरे बनाए हुए नहीं है, यह तो उन स्वार्थी तत्वों की देन हैं जो सभ्यता व संस्कृति को अपने नियंत्रण के अधीन रखना चाहते हैं। मैने तो साक्षात जीव और जगत को ही बनाया है। प्रकृति के न्याय सिद्धांत को उन के सहयोग के लिए छोड़ा है।

हे पंडित जी ये इन सबकी धडकनों में मेरे नाम की तडपन नहीं है बल्कि तडपन है तो एक स्थान विशेष और एक धर्म विशेष की। इन के दिलों की धडकन में एक दूसरे से को नीचा दिखाने की ही तड़पन है वरना विश्व स्तर पर जाति, भाषा, धर्म के नाम पर कभी दंगे फसाद और उपद्रव नहीं होते।

हे पुजारी जी तुम जानते हो जहां लोभ, लालच, अहंकार, फरेब, घृणा और नफ़रत की आंधियां चलती है, वहां पर मेरा निवास नहीं होता चाहे इस दुनिया का कोई भी सभ्यता और संस्कृति क्यो न हो, ना ही मैं वहां बसता हूं जहां क्रोध विवाद ओर दंगा हो।

मैं तो उन मन मंदिरों में बसता हूं जहां प्रेम की गंगा बहाई जातीं हो और मानव मूल्यों को तरजीह दी जाती हैं। हे पुजारी जी देखो तुम तो सब कुछ जानते हो और अन्य संस्कृति को मानने वाले भी जानते हैं फिर भी तुम मेरे नाम का गुण गान नहीं करते हो ओर मेरी मूरत के अलग अलग रूपों के हिमायती बन विवाद करते हो।

संत जन कहते हैं कि हे मानव तू सकारात्मक सोच से ही कर्म कर ओर तेरी आत्मा में बैठे उस महामानव को देख, वही तेरे भगवान है और वहीं उनका स्थान है। इसलिए हे मानव तू अपनी धडकनों में उसके नाम की तड़पन रख, वास्तव में तू हर विवाद से बच जाएगा और तेरे हर काम सफ़ल हो जाएगा।

सौजन्य : भंवरलाल