सबगुरु न्यूज। जंगल से एक राहगीर निकल रहा था तो उसे रास्ते में एक बबूल का पेड दिखा। उस बबूल के पेड़ से चंदन की धीमी धीमी चंदन की महक आ रहीं थी। उस महक की चाहत में राहगीर रूका ओर थोड़ी देर बाद वो उस बबूल के पेड़ पर मोहित हो गया।
खुशबू इतनी लुभावनी थी कि उस राहगीर ने उस पेड़ की डाली को तोडने की सोची। जैसे ही राहगीर ने बबूल की डाली पर हाथ रखा तो एक-दम कई कांटे उसके हाथ में लगे। वह लहुलहान हो गया। उसके हाथ से खून की धारा बहने लगीं और वह दर्द से कराह उठा।
इस बीच उसके साथ एक इत्तेफाक हुआ। वह बबूल का पेड हंसते हुए बोला कि हे प्रिय राहगीर जरा संभल कर चलना इस दुनिया में लोग खुशबू के भ्रम में कांटों से उलझ कर अपना नुकसान करा बैठते हैं और इस प्रपंची दुनिया में लोग चंदन बनकर सब को अपने कपट झूठ और फरेब के कांटों से डंस लेते हैं।
बबूल के पेड़ से चंदन की खुशबू नहीं आ सकतीं लेकिन जाने अंजाने मे लोग यदि चंदन की खुशबू बबूल के पेड़ पर छिडक देते हैं तो वह खुशबू अपनी संगत से बबूल के पेड़ पर खुशबू तो फैला देतीं हैं लेकिन उसके कांटों के गुण धर्म को नहीं बदल सकती है।
यही जमीनी हकीकत व्यक्ति को दुनिया के छिपे चेहरों को दिखा देतीं है। संगत से केवल पारस ही लोहे को सोना बना सकती हैं लेकिन दूसरे किसी के भी गुण धर्म को नहीं बदल सकती। सज्जन व्यक्ति की पहचान लाखों में भी हो जाती हैं लेकिन जिसने केवल सज्जनता का लिबास ओढ रखा है उसकी पहचान बबूल के कांटों की तरह होती हैं जो व्यक्ति को खुशबू देकर धोखा दे जाती है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव यदि सांप पर चन्दन का ईत्र डाल दिया जाए तो वह विषहीन नहीं हो सकता और बिच्छु को साधु की संगत में कई साल तक छोड़ दो तब भी वह डंक मारना नहीं छोड़ता। सज्जनता का चोला पहन कर फरेबी कभी मित्र नहीं बन सकता और वक्त आने पर अपने ही स्वार्थ के वश अपनी दुर्जनता की छाप छोड़ देता है। इसलिए हे मानव तू अपनी कमजोरी का पुतला मत बन और अकेला ही आगे बढ़, तेरे जैसा कारवां खुद तेरे साथ हो जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल