सबगुरु न्यूज। आकाश में सूर्य की यात्रा दक्षिण से उत्तर की ओर होती है, इसे उतरायन सूर्य कहा जाता है। 22 दिसम्बर से 21 जून तक सूर्य की यात्रा के इस उतरायन में प्रकृति अपने कई रूप दिखाती है और जीव व जगत में एक विशेष ऊर्जा को बरसाती हुई उसे हर तरह से परिपूर्ण कर अपना संतुलन स्थापित करती है।
उतरायन की ओर बढ़ बढते सूर्य को सबसे पहले आकाश मंडल की धनु और मकर राशियों का सामना करना पड़ता है। इन राशियों के प्रभावित होने वाले क्षेत्रों को गज़ब की ठंड का सामना करना पड़ता है। हिन्दू मास में यहां पोष का महिना होता है।
सूर्य के धनु राशि में प्रवेश के साथ ही केतु ग्रह के नक्षत्र मूल में सूर्य को गुजरना पड़ता है और धार्मिक मान्यताओं में इसे “धनुर मास” मानते हुए 16 दिसम्बर से 14 जनवरी तक हवन तप जप आदि अनुष्ठान होते हैं। दक्षिण भारत में महा लक्ष्मीजी के विवाह का पर्व मनाया जाता है।भगवान के नाना प्रकार के पकवान व बड़ों का भोग लगाया जाता है जो “पोष बडा” उत्सव भी कहलाता है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से सूर्य आत्मा का कारक माना जाता है और वृहस्पति ग्रह को ज्ञान का कारक ग्रह माना जाता है। इस प्रकार आत्मा और ज्ञान का संगम होता है सूर्य का बृहस्पति ग्रह की राशि धनु में जाने पर। अतः आत्मा पर किसी तरह का मल नहीं रहता ज्ञान के कारण इसलिए इसे मलमास मानते हैं।
सूर्य का धनु राशि में भ्रमण और पोष मास की ठंड रात्रि के समय अति कष्टदायक हो जाती है। ठंड अपना साम्राज्य स्थापित करती हुई सभी को कंपकंपा देती है। ऊनी वस्त्र ठंड से अपना असर खो देते हैं, बंद कमरों में रजाई कम्बल भी ठंडे हो जाते हैं। शरीर की चमड़ी कोई छील रहा है ऐसा लगता है। बंद कमरों में रजाई कम्बल ओर ठंड को दूर करने के लिए गर्म आंच का सहारा लेना पड़ता है और ऐसा लगता है कि इस आग से रात भर लिपटे रहे।
इस ठंड की रातों में खुले आसमान के नीचे बैठे गरीब तबके आग का अलाव जला इन ठंडी रातों से कुछ निजात पाते हैं और जानवर कांप कर दीवारों की आड़ लेकर अपने गुजारा कर इन “खाल को कोसती” पोष मास की रातों को निकालते हैं।
संत जन कहते है कि हे मानव प्रकृति का यह क्रम चलता रहेगा नहीं तो इस मौसम की फसलें व वनस्पतियों में पौष्टिकता व उनके मूल गुण धर्म पैदा नहीं होंगे साथ ही हे मानव तेरे शरीर में व्यापत विशाल अग्नि तत्व भी संतुलित नहीं हो पाएगा।
यह शरीर की गर्मी बाहर आने का काल है, इसलिए ज्ञान रूपी मन ओर आत्मा रूपी ऊर्जा का संगम कर मन के मेल को त्याग कर नवीनता को जन्म दे, यही इस मास की पुत्रदा एकादशी का सुंदर फल है जो पोष मास की पुत्रदा एकादशी कहलाती है।
इसलिए हे मानव तू गुमराह मत हो और इस मास की ठंड मे अपने शरीर की ऊर्जा का एक अनुकूल संतुलन खान पान के संयोग से बना और श्रमदान कर, तेरे शरीर की ऊर्जा बढ जाएगी पोष मास की ठंड बरसाती राते गुज़र जाएंगी।
सौजन्य : भंवरलाल