करिश्माई शक्तियों का बादशाह बन जब कोई व्यक्ति वातावरण को अपने अनुकूल ढाल लेता है तब परिस्थितियां उसकी गुलाम बन जाती हैं और मानव कमजोरियों का पुतला बन जाता है।
ये करिश्माई शक्ति का बादशाह आकाश के राहू ग्रह की तरह हुंकार भरकर अपने बाहुहल का प्रदर्शन करता है और आकाशीय दुनिया में अपने बैर विरोध की हरकत दर्ज करा जगत की आत्मा सूर्य व मन के राजा चन्द्रमा पर ग्रहण लगा देता है।
करिश्माई शक्ति के बादशाह का यह व्यवहार देख गुरू ग्रह समझाने के लिए व मंगल ग्रह ख़ून खराबे के लिए आकाश की दुनिया में युद्ध घोषित कर देते हैं। युद्ध के मैदान में जैसे ही करिश्मा का बादशाह आता है तो चारों ओर सन्नाटा छा जाता है और राहू बन बैठा वह व्यक्ति सभी को येन केन प्रकारेण चित कर देता है।
यह देख आर्थिक मामलों का राजकुमार बुध ग्रह और कला व संस्कृति की हीरो शुक्र ग्रह मौन धारण कर करिश्माई व्यक्ति की शरण में आ जाते हैं और दोनों ही उसकी शक्ति का अंकन कर समझ जाते हैं कि यह व्यक्ति करिश्मा का बादशाह नहीं वरन शनि ग्रह के दर्शन का परिणाम है जिसने धड शनि का लिया हैं और दिमाग राहू का लिया हैं तथा बदन पर भावुक ग्रह केतु की चादर लपेट रखी है।
बुध और शुक्र ग्रह फिर अपना खेल दिखाना शुरू करतें हैं। बुध आर्थिक मामलों को ढीला पटक कर दिवालिया बना देता है और शुक्र कला व संस्कृति में दीमक लगा सब को संस्कृति विहीन कर देता है। राहू बने करिश्माई व्यक्ति का बल खत्म होने से उसकी बुद्धि बेचारी हो जाती है और उसकी कला व संस्कृति तथा भावुकता ओंधे मुंह गिरती है और वह अन्धकार में खो जाता है फिर पूर्णिमा से अमावस्या बन लोप हो जाता है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव तू अकारण भयभीत मत हो क्योंकि किसी के उतराव-चढ़ाव का वक्त एक सामान्य बात है। चन्द्रमा की पूर्णिमा करिश्मा नहीं है वरन् हर रोज उसकी बढ़ने की कला है ओर वही उसके कम हो कर अमावस्या बनती हैं। एक व्यक्ति का उत्थान होता है तो उसका पतन भी अनिवार्य रूप से होता है।
सौजन्य : भंवरलाल