चन्दन के पेड़ सें लिपट कर सांप कितने भी खुशबूनुमा बन जाएं मगर उनका विष खत्म नहीं होता ओर उसकी कीमत चन्दन के वृक्ष कों भी चुकानी पड़ती है क्योंकि सांप लिपटे होने के कारण उनके पास कोई नहीं जाता। विष ओर खुशबू की यह कैमेस्ट्री एक भय पैदा करतीं हैं ओर मनमाना व्यवहार करने कों उतारू होतीं हैं।
सोना भले ही कितना भी कीमती क्यों न हो उसे लोहे की सुरक्षा में ही रहना होता है और शायद यही कारण आकाशीय ग्रहों का हैं। गुरू ग्रह सोने की धातु का कारक माना जाता है जबकि लोहे का कारक ग्रह शनि होता है गुरू ग्रह से लोग भयभीत नहीं होते क्योंकि वह केवल व्यक्ति को दिवालिया बना सकता है लेकिन शनि ग्रह दिवालिया बनाने के साथ साथ व्यक्ति के हाथ में भीख मांगने का कटोरा भी दिला देता है।
सोने की नगरी लंका में लोहे का बादशाह बन रावण राज करता था। उसकी नीति अहंकार सें भरी होने के कारण वह स्वर्ग जाने के लिए सोने की सीढियां नहीं बना पाया और ना ही समुद्र के जल को मीठा कर पाया था। यहां राहू की कूटनीति ने उसे सर्वत्र सफल होने के बाद भी सफल नहीं होने दिया।
यहीं हाल देवों के स्वर्ग का हुआ। धोखे से वृत्रासुर की हत्या के कारण उस पर ब्रहम हत्या का दोष लग गया, देवराज इंद्र का सिंहासन ख़ाली हो गया। वहां पर पृथ्वी के राजा नुहूष को स्वर्ग के सिंहासन पर बैठा दिया। अपने राजसी ठाट-बाट देख चरित्रवान नुहूष का चरित्र भी गिर गया और स्वर्ग में हाहाकार मच गया कि नुहूष देवराज इन्द्र की पत्नी शचि को अपनी पत्नी के रूप में रखना चाहता है। ऋषियों के आशीर्वाद से शचि तो बच गयीं लेकिन नुहूष को अजगर बन कर पृथ्वी पर वापस आना पड़ा।
सोने की नगरी में आत्मा नहीं होती है इस कारण यहां लोहे का बादशाह होता है। यह लोहे का नीति से काम कर स्वयं कों बर्बादी की ओर अग्रसर कर देता है। संत जन कहते हैं कि हे प्राणी तू सोना है तो सोने की ही संगत कर, लोहे की संगत से तू मिट जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल
जोगणिया धाम पुष्कर