सबगुरु न्यूज। वह काल अपने आप में एक अनूठा था जहां राज तंत्र में न्याय की प्रधानता थी। जब राजतंत्र में न्याय का गला घोंटा जाने लगा तो प्रजा के बीच बगावत के स्वर निकलने लगे और शनैः शनैः राजतंत्रों का पतन होने लगा। न्याय का अधिकार राजा के खाते से निकल कर प्रजा के खाते में जमा हो गया और राज सत्ता का स्थान जन सत्ता ने ले लिया।
प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के विकास में राजतंत्र खूब महकते थे। उसका मूल आधार उस राजतंत्र में न्याय की खुशबू सर्वत्र महकना होता था। राजा न्याय प्रिय बनकर अपना वर्चस्व स्थापित करते थे और जन मानस राजा को न्याय का दूसरा रूप मानते थे। इस कारण सदियों बाद भी वे राजा अपने शासन से नहीं न्याय प्रिय होने के कारण जाने जाते थे। राजा विक्रमादित्य का नाम एक न्याय प्रिय सम्राट के रूप में आज भी श्रद्धा के साथ देखा जाता है।
एक आदर्श न्याय के लिए उन्होंने अपना सब कुछ खो दिया था। पर वे अपने न्याय धर्म से पीछे नहीं हटे। कहा जाता है कि एक बार नौ ग्रह उनकी परीक्षा लेने के लिए उनके राज्य में गए और बोले हे राजन तुम न्याय करों कि हम सबमें से बडा कौन है। विक्रमादित्य राजा घबराए नहीं। राजा ने नौ धातुओं के आसन बनवाए ओर सभी ग्रहों को कहा आप अपनी इच्छा के अनुसार इन आसनों को ग्रहण करें।
सबसे पहले बृहस्पति ग्रह सोने के आसन पर बैठ गए और आखरी आसन लोहे का था उस पर शनि ग्रह बैठ गए। राजा विक्रमादित्य ने धातुओं के मूल्य के अनुसार सोने के आसन पर बैठे बृहस्पति ग्रह को सबसे बडा और लोहे के आसन पर बैठे शनि ग्रह को सबसे छोटा ग्रह घोषित कर दिया। शनि ग्रह ने कहा राजन एक बार और विचार कर लो, फिर से फैसला कर लो।
विक्रमादित्य ने कहा मैंने उचित न्याय किया है इसलिए अब ये फैसला बदल नहीं सकता। शनि ग्रह बोले- हे राजन ये सोने के आसन पर बैठा बृहस्पतिदेव मेरे कोप, ज्ञान, बुद्धि और विवेक सभी खो देता हैं, मैने कई बार इसकी सात्विकता भंग कर इसे भोग विलासी बना दिया। इस शुक्र ग्रह की शान ओ शोकत खत्म कर इसे भिखारी बना दिया। मंगल ग्रह की बुद्धि खराब कर इसे सेनापति से आतंकी बना दिया। बुध ग्रह के वित्त और व्यापार ओर व्यवसाय को दिवालिया बना दिया। सूर्य तथा चन्द्रमा पर ग्रहण लगवाकर इनकी प्रतिष्ठा भंग कर दी। राहू का सिर काट कर उसको दो टुकड़े करवा दिए।
हे राजन इस ब्रह्मांड के सभी देवों और देवराज इन्द्र को मैने सब सुखों से वंचित कर जंगलों में भटका दिया। हे राजन अब तुम सावधान हो जाओ। मैं छोटा हूं या बडा तुम्हे भी मालूम हो जाएगा। शनि ग्रह के कोप से राजा घबराए नहीं क्योंकि वे न्याय प्रिय थे। शनि देव ने उनका राज पाट छुडवा दिया। दर दर भटकने को मजबूर कर दिया ओर चोरी का इलजाम लगा उनके हाथ पांव कटवा दिए।
एक दिन शनि ग्रह राजा विक्रमादित्य के पास गए और बोले हे राजन देखा मेरा बल। तुम अब भी बोल दो कि मैं नीचा नहीं सबसे ऊंचा हू। तुम्हें तुम्हारा राज लौटा दूंगा। शनि ग्रह की बात सुनकर विक्रमादित्य ने कहा कि नहीं देव मुझे राज नहीं चाहिए। मैं न्याय करता हूं और मुझे न्याय ही प्रिय है।
शनि ग्रह प्रसन्न हो गए ओर बोले हे- राजन जो राजा न्याय प्रिय बनकर प्रजा के दुःख दूर करता है उनका मै स्वयं सम्मान करता हूं, नहीं तो मेरी अढैया और साढ़े साती में उसे कटोरा हाथ में देकर राजा से भिखारी बना देता हूं।
संत जन कहते हैं कि हे मानव तू गुमराह मत कर और न्यायप्रिय बन, भले ही तेरी सत्ता तेरे हाथ से निकल जाए। तेरे न्याय प्रिय होने से इतिहास तुझे सम्मान देगा अन्यथा इतिहास के पन्ने पर तेरे धूल जमी रहेगी।
सौजन्य : भंवरलाल