सबगुरु न्यूज। काले बादल ओर घनघोर घटाएं आसमान पर छा जातीं हैं और चारों तरफ अंधकार ही अंधकार छा जाता है। हर तरफ बिजलियों कडकडाहट कर रही हैं।
तब आसमान इस विकट घडी मे आंखों में करूणा की पुकार जब प्रकृति सें करता है तो प्रकृति हवा का रूप धारण कर बादलों पर प्रहार करती है, इस प्रहार सें बादल बरस कर अपना अस्तित्व मिटा कर आसमान के संकट को खत्म कर देते हैं।
प्रकृति चूंकि रचना करने में प्रखर होती है और वह अपना संतुलन खुद ही बना लेती है चाहे ये संतुलन किसी भी कारण से बिगड़ा हो। प्रकृति की वास्तु बैजोड है तथा मानव ने इसे समझ कर विज्ञान के जो नियम बनाए या हर क्षेत्र में व्यवस्था बनाई वह आखिर कार परिपूर्ण नहीं हो पाई।
समय और परिस्थितियों के कारण हर बार हर क्षेत्र में व्यवस्था मे परिवर्तन होता रहा।
आध्यात्मिक विज्ञान ने कर्म की गति तथा भाग्य की प्रधानता पर ही बल दिया। कर्म की गति टालने से भी नहीं टलती है तो यहां फिर दैव, दानव व मानव सभी को इनका सामना करना ही पडता है चाहे वे कुछ भी बचाव कर लें।
प्रथम पूजत विधाता श्रीगणेश का जब जन्मोत्सव मनाया जा रहा था, स्वर्ग के सभी देव, गंधर्व, ग्रह उनके दर्शन के लिए आए और बारी बारी से दर्शन करने लगे। जब शनि देव आए तो उन्होंने गणेश जी के मुंह की ओर नहीं देखा। तब पार्वती ने कहा शनि देव तुम मेरे पुत्र की ओर क्यों नहीं देख रहे हो। शनि देव ने कहा जगत जननी मैं देख तो लूं लेकिन मेरी दृष्टि में अशुभता है, तब पार्वती जी कहतीं हैं हे शनि देव कर्म की गति प्रधान होती हैं शुभ व अशुभ जो भी होगा, वह होना ही है फिर भी तुम मेरे पुत्र के मुंह की ओर देखो।
डरते हुए शनि ने जैसे ही गणेश जी के मुंह की ओर देखा तो गणेश जी की गर्दन कट गई ओर सिर विहीन देख सभी घबरा गए शनि देव भी थर थर कांपने लगे। सभी देवों ने सूझ बूझ कर हाथी के बच्चे की गर्दन लगा दी लेकिन पार्वती जी ने क्रोध कर शनि देव को अंग विहिन होने का श्राप दे दिया। शनि ग्रह घबरा गए और भगवान् विष्णु जी से श्राप मुक्ति का उपाय पूछा।
विष्णु जी ने श्रीगणेश जी की आराधना व गणेश जी के संसार मोहन कवच का अनुष्ठान बताया।
शनि देव ने कोकिला कुंज मे गणेश जी की पूजा की तथा उनके संसार मोहन कवच का अनुष्ठान कर पार्वती के श्राप से मुक्ति पाई। यह कथा ब्रह्मवैवर्त पुराण की है। संत जन कहते हैं कि हे मानव तू कर्म कर प्रकृति ही सब कुछ संतुलन बना देगी।
सौजन्य : भंवरलाल