सबगुरु न्यूज। तुझे सदा ही धिक्कार है राजन, तूने केवल सत्ता सुख भोगने की ख़ातिर अपनों को ही डंस लिया। तेरे सामने, तेरे ही कारण सबने मिलकर तेरे अपनों को ही डस लिया। हजारों गरीबों के आशियाने उजड गए। हजारों भूख के मारे मर गए और अनगिनत महिलाओं को विधवा बनवा डाला। अरे तू नैतिकता की दुहाई देता है, स्वयं को भक्त और दूसरों को शैतान समझता है।
लेकिन याद रख राजन, अपने स्वार्थों के लिए अपनों का ही पतन कर देने वाले राजन एक दिन इन गरीबों की हाय तुझे कुछ भी भोगने लायक नहीं छोड़ेगी। तू उस पागल की तरह सभी जगह जाकर पत्थर फेंककर खुद का ही सिर पत्थर के नीचे लगा लेगा। तू धर्म और नैतिकता का पाठ बता रहा है और तेरे ही कुनबे को तू विद्रोही सेना बता मरवा रहा है।
धर्म, दर्शन और आचार की बातें करने वाले राजन, तू खुद मानव धर्म का विरोधी होकर उसकी हत्या करवा रहा है। तू जिस कुनबे और धर्म में पैदा हुआ है, तू खुलेआम उनको ही लूट रहा है और फिर भी तू झूठे मसीहा की तरह उन्हें दिलासा दिला रहा है।
अरे बेरहमी तू जिनके ही खून से पैदा हुआ, उनके ही अन्न व नमक को पेट में डाला अब तू उनके साथ ही बर्बरता से नमकहरामी कर रहा। अरे पापी दुनिया का राज और सारा सुख भी तुझे मिल जाए तो वह भी फीके पडते है इस कुनबो के सामने। वास्तव में तू एक मायावी शैतान ही है।
यह कहते कहते मंदोदरी की आंखों में आंसू आ गए और अपने मृत पति रावण के सिर को गोद में लेकर बैठ गई और फिर विभीषण से कहने लगी हे विभीषण तूने धर्म की आड़ लेकर अपने भात्र धर्म का पालन नहीं किया और ना ही अपने कुनबे को बचाया। दूसरों की गुलामी कर राजा बनना चाहा। पति धर्म की पालना में मैंने यह सब कुछ कहा और अब लंका की महारानी होने के कारण तुझे श्राप देतीं हूं कि सर्वत्र रावण चरित्र विजयी रहेगा और तेरे जैसे विभीषण सदा अपमान के पात्र बनेंगे।
मंदोदरी ने अपने पति को बहुत समझाया कि स्वामी जो कुछ भी तुम कर रहे हो वह सब गलत सोच है आपकी, पर रावण अभिमानी था और एक भी बात मंदोदरी की नहीं मानी। सदैव अपने आप को एक शक्तिशाली राजा ही मानता रहा। अधर्म करके भी वह खुद को सही बताते बताते ही मारा गया।
संत जन कहते हैं कि हे मानव दुनिया में अहंकारी के सामने धर्म, कर्म, सत्य, अहिंसा, त्याग, बलिदान, लोक हित, बेसहारा, गरीब, बालक बालिका, नारी नर, बुजुर्ग और जीव यह सब कुछ मायने नहीं रखते। वह ग़लत करके भी सच की दुहाई देगा और विरोध करने वालों को मिटा देगा।
लेकिन अहंकार की आग में एक दिन जीते जी वह खुद जलकर भस्म हो जाएगा। इसलिए हे मानव तू जीवन में अपनी भूमिका का निर्वाह उस भूमिका के गुणों के अनुसार ही कर नहीं तो ग़लत भूमिका निभाने का कलंक तरे सिर पर लग जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल