सबगुरु न्यूज। हे भले मानव तू कभी किसी को अच्छा और कभी उसी को खराब मान कर बुरा कहता है तथा हर बार, यहां तक की बार बार ऐसा ही होता है। कभी चांद की खूबसूरती का बखान कर उसे पूजता है तो कभी वही चांद चौथ का होता है तो उसे देखने से इसलिए बचता है कि कहीं मेरे ऊपर कोई लांछन न लग जाए।
कौआ जब कपड़ों पर आकर बैठ जाता है तो उन कपड़ों पर काल का बासा समझ फिंकवा देता है और यदि वह तेरे सिर पर बैठ जाए तो बहुत बड़ा अपशुकून मानकर मन भय से कांपता रहता है कि मेरी अकाल मृत्यु ना हो जाए।
अपशकुन से बचने के लिए तू हर संभव अपने बचने के लिए दान पुण्य करता है और वही इनमें अपने पूर्वजों की छवि निहार श्राद्ध पक्ष में इनके लिए पलक पावडे बिछा सम्मान से बुलाता है। ऐसे में यह तेरा भोजन तेरा ग्रहण नहीं करता है तो इसे पितरों का दोष मान हर संभव प्रयास कर अपने आप को दिलासा दिलाता है।
हे मानव तू नाग पंचमी पर नागों की पूजा करता है ओर वहीं नाग देव जब घर में घुस जातें हैं तो तू उसे भगाने व मारने का प्रयास करता है। हे मानव तू वास्तव में ही बहुत भोला है और अपनी जरूरत, भय या प्रेम वश अपने व्यवहारों को बदलता रहता है। अपने मतलब के लिए खराब व्यक्ति को महाराज और महाराज को गुंडा साबित करने के लिए हर हथकण्डे अपना लेता है।
हे भले मानव तू कितनी भी होशियारी कर लेकिन तेरा अस्तित्व उस प्रकृति सें सदा गौण ही रहा है। भले ही तू चांद सितारों की दुनिया में शरीर सहित पहुंच गया हो लेकिन अभी भी तू दिल और दिमाग से भोला ही है।
हर बार अपनी जरूरत, भय या प्रेम वश तू अपने व्यवहारों को बदलता रहता है, उस पतवार हीन नौका की तरह जो हवा के रूख़ के अनुसार ही चलती है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव तू अपने अन्दर बैठे उस महामानव की बात सुन जो तुझे बार बार यह कहता कि तू प्रकृति के हर जीवों का संरक्षण कर चाहे वह कौवा हो या सांप। सदा सभी के साथ समान व्यवहार कर क्योंकि तेरी इस मानव देही का कोई भरोसा नहीं है कि कल जो बजारों में बात कर रहे थे आज उन्हें मृत होने पर श्मशान में जला दिया चाहे कौवा उसके सर पर बैठा ही नहीं हो।
सौजन्य : भंवरलाल
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