सबगुरु न्यूज। वे दानव थे जिनकी संस्कृति ने कठोर जप तप करा उन्हें देवराज इन्द्र के सिंहासन पर बैठा दिया। देवराज इंद्र ने दानवों के तप में कई विध्न उतपन्न किए यहां तक कि कई दानव जो ध्यान मगन थे उनको भी अपने वज्र से मार डाला तो कई दानवों से मित्रता कर उन्हें धोखे से मरवा दिया।
देवकुल के ऋषि त्वष्टा के पुत्र त्रिशिरा को मार डाला जब त्रिशिरा ध्यान में बैठे थे और वृत्रासुर के साथ मित्रता कर एक दिन निहत्था देख वृत्रासुर को भी मार डाला। ऐसा पौराणिक इतिहास बताते है। यहीं कारण पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि देवराज इंद्र को ऋषि त्वष्टा ने श्राप दे ब्रह्महत्या का दोष देवराज इन्द्र को देकर स्वर्ग शासन से हटा दिया तथा कोई भी शक्तियां उसे बचा नहीं पाई।
दानव संस्कृति के भक्त प्रह्लाद ने जब दानवों के कहने से देवराज इन्द्र पर आक्रमण कर दिया ओर स्वर्ग पर विजय का झंडा बुलंद किया तब देवराज इंद्र ने आदि शक्ति की शरण ली ओर शक्ति स्वयं दानव राज प्रह्लाद से लड़ने पहुंची।
शक्ति को देख जब दानव भागने लगे तो प्रह्लाद ने उन्हें रोका तथा वे स्वयं शक्ति के समक्ष गए और उनके चरणों में सिर झुका दिया तथा प्रार्थना की हे माता- हम देव और दानव जब आपकी ही संतान हैं तो आप हमसे ऐसा व्यवहार क्यों कर रहीं हो जबकि हम सब अपने बल बूते से ही जीते हैं और कुछ भी छल कपट झूठ फरेब लालच ओर अंहकार हमने नहीं किया।
दानवों तथा देव सभी की संस्कृति में आपने ही अवगुण व गुण दिए हैं वे देवों में भी हैं ओर हम दानवों में भी हैं फिर आप केवल हमारे अवगुण को ही क्यों देख रहीं हो। आप तो जगत माता हैं। तब दैवी शक्ति बोलीं दानवों अभी तुम पाताल जाओ और मेरे आशीर्वाद से आनंद में रहो अगले आने वाले मन्वंतर में दानवीर दानव कुल का राजा बलि ही स्वर्ग के शासन पर बैठेगा।
देवी शक्ति के वचन सुनकर दानव राज प्रह्लाद दैवी को प्रणाम करके पाताल लोक की ओर चले गए।
संत जन कहते हैं कि हे मानव जब अपने हितों की पूर्ति जिससे भी हो जातीं है उसे हम देव मान लेते हैं चाहें वह हित साधने वाला देव दानव या मानव ही क्यो न हो। जब हमारे अनुसार वह हमारा पक्षधर न हो तो हम उसे दानव बना डालते हैं।
दुंभी की तरह चाल चलता स्वार्थी तत्व की अपनी कोई भी रचना नहीं होती ओर ना ही संस्कृति। वह तो अपने स्वार्थ पूरा नहीं करने वालों को देवता से दानव बना देता है यही आंकड़ों की दुनिया का मायाजाल है जिसे अपनें पक्ष में ओर विरोधियों के खिलाफ बोला जा सकता है। जिस जंगल में आग लगीं रहतीं हैं तो वहां का पक्षी उड कर दूसरे जंगल की ओर शरण लेता है।
इसलिए हे मानव तू अपनी संस्कृति को बनाए रख, जो कल्याणकारी हो भले तुझे किसी भी समस्याका सामना करना पडे। तेरी विजय होगी।
सौजन्य : भंवरलाल