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भूमिका संघर्ष और बढता हुआ अलगाव - Sabguru News
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भूमिका संघर्ष और बढता हुआ अलगाव

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भूमिका संघर्ष और बढता हुआ अलगाव

सबगुरु न्यूज। दुनिया का कोई भी व्यक्ति अपनी सभी भूमिकाओं को भूमिका के गुण धर्म के अनुसार नहीं निभा पाता है और इसी कारण उसे भूमिका संघर्ष की स्थिति का सामना करना पड़ता है।

कमजोर व्यक्ति इस भूमिका संघर्ष के दुष्प्रभावों से टूट जाता है और शक्ति शाली व्यक्ति स्वयं अपने आप को तानाशाह धोषित कर अपनी भूमिका अदा को सही बताता है। बस यही से समाज में संघर्ष पैदा होने लग जाता है और विखंडन अलगाव ओर आंतक विद्रोह आदि जन्म लेते हैं।

जन्म के साथ ही व्यक्ति को समाज में एक प्रस्थिति मिलतीं है और उस प्रस्थिति के अनुसार ही उसकी भूमिका होती है। उस भूमिका को व्यक्ति अदा करता है। भूमिका अदा करना ही जीवन का सबसे कठिन काम होता है।

रंगमंच पर या फिल्म जगत में जब एक कलाकार कोई भूमिका अदा करता है तो देखने वाले तुरंत ही उस पर अच्छी या बुरी टिप्पणी तुरंत कर देते हैं।

जीवन मे व्यक्ति को कई तरह की भूमिका निभानी पड़ती हैं। उस भूमिका को निभाने में व्यक्ति ने अपने आप को कैसे प्रतुत किया उसका असर पूरे जीवन पर पड़ता है। यदि भूमिका को निभाने में व्यक्ति ने कोई कमी छोड़ दी तो उसे भूमिका संघर्ष की स्थिति का सामना करना पड़ता है।

यह भूमिका संघर्ष ही परिवार समाज देश और विश्व में अलगाव तथा विखंडन के बीज बो कर उसे एक बडे संघर्ष का रूप देकर अंशाति व अराजकता का माहौल पैदा कर देगा।

घर के मुखिया को एक साथ कई भूमिकाओं को निभाना पड़ता है। उसे पुत्र, भाई, पति, पिता, मित्र, नौकर मालिक। इन सभी भूमिका को सही ढंग से निभाने में व्यक्ति कमी छोड़ देता है और यही कमी उसे भूमिका संघर्ष की ओर ले जातीं हैं और यह भी सत्य है कि हर भूमिका को निभाने में व्यक्ति पूरा न्याय नहीं कर पाता है।

इस भूमिका संघर्ष से व्यक्ति स्वयं भी टूट जाता है तथा जिस के साथ भूमिका अदा करने का न्याय नहीं हुआ वह भी बगावत कर देता है बस वही से पहली बार इतिहास में संघर्ष का नाम लिखा जांना शुरू हो जाता है।

बगावत का पहला स्वर विरोध से शुरू होता है और बाद मे घरणा प्रदर्शन बंद तालाबंदी हड़ताल तोड़ फोड़ आदि के बाद विखंडन अलगाव आंतकवाद जैसे महा दानव जन्म ले लेते हैं और एक गंभीर नासूर बन विश्व समुदाय को पंगु बना देते हैं। इसके बाद कोई भी कितना भी शक्तिशाली क्यो न हो उसकी अपनी व्यवस्थाएं डगमगा जाती हैं।

व्यवस्थापक अपनी भूमिका जब सही नहीं निभा पाता है तो वह सब दोष अपने सिर पर नहीं लेकर भूमिका न्याय पीडित लोगों पर लगा देता है। ओर उन्हे विश्व समुदाय का विरोधी करार दे देता है।

आज भूमिका संघर्ष ही इस युग में विश्व अशांति का प्रमुख कारण है। भूमिका निभाने वाला उस भूमिका के गुणों से हीन हो जाता है और सच्चे और अच्छे सकारात्मक मूल्यों के स्थान पर बुरे व हीन नकारात्मक मूल्यो को ग्रहण कर सारी व्यवस्था को संघर्ष की राह पर ले जाता है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव तू अपने मानव होने की भूमिका को भली भांति निभा ओर मानवता का परिचय दे। मानवता का परिचय ही सकारात्मक रूप से जन कल्याणकारी होगा।

सौजन्य : भंवरलाल