अमावस्या के बाद नए चांद का उदय नवीनता का संदेश देता है और कहता है कि हे मानव फिर से एक नया सवेरा शुरू हो गया है अब तेरे तन मन धन ओर कर्म से जागने का समय शुरू हो गया है अब समर्पण भाव रख ओर पूर्णता की बढ तब तुझे जमाने में चौहदवी के चांद की उपमा दी जाएगी और तुझे पूर्णिमा की ओर बढा देगी। जब तक तुझ में समर्पण भाव नहीं आएगा तेरे जीवन की समस्या का अंत नहीं होगा।
समर्पण भाव नहीं आने से तुझे चन्द्रमा की तरह कभी अमावस्या तो कभी पूर्णिमा का सामना करना पडेगा। जीवन यूं ही शुक्ल और कृष्ण पक्ष की तरह निकलता रहेगा और जीवन का यह सफर बिना पूरी यात्रा के ही रह जाएगा।
पूर्णिमा का चांद अपनी चांदनी बिखरने के बाद भी अपने प्रियतम से बहुत दूर रहकर समर्पण नहीं कर पाता इस कारण उसे फिर अपने प्रियतम के पास समर्पण के लिए जाने के लिए हर एक दिन एक कला को समर्पित करनी पडती है और अमावस्या के दिन अपने प्रियतम अपना सम्पूर्ण कर देता है और अमावस्या बन इस संसार से लोप हो जाता है।
सूर्य ओर चन्द्रमा का यह मिलन ब्रह्मांड की तीन सौ साठ डिग्री करा देता है चन्द्रमा ओर सूर्य का यह मिलन शिव शक्ति के मिलन की रात बन संसार में घोर अंधकार कर देती है ओर नई रचना को फिर जन्म देती है।
समर्पण भाव रख इस श्रावण मास मे पार्वती ने शिव को प्राप्त किया तो वही समर्पण भाव रामेश्वरम में श्री राम ने शिव को स्थापित किया। श्री कृष्ण ने भारी तप कर भोलेनाथ का अपने संतान का वरदान मांगा।
मानव में भी समर्पण भाव के लिए श्री कृष्ण ने अर्जुन को शिव भक्ति कराई ताकि उसे पशुपसत्र मिले, ताकि जीवन के महाभारत में वह विजय पथ की ओर बढे। समर्पण भाव ही सभी दुखों को दूर करता है और आत्म संतुष्टि देता है।
सौजन्य : भंवरलाल