सबगुरु न्यूज। वे आत्म निर्भर ही थे। खुले आसमान के नीचे, शुद्ध हवाओं के साथ, पहाडों से निकलीं नदियों के किनारों के आस-पास अपना जीवन यापन करते थे। खेती बाड़ी, बागवानी, कपडा बुनकर और हर तरह से मजदूरी के जरिए धन कमाकर अपनी आर्थिक जरूरत पूरी करते थे। यह सब करते हुए खुशी से जीवन का आनंद उठाते थे।
उनका यह सुख चैन कुछ सशक्त बलधारी बर्रास्त नहीं कर पाए। उनकीं स्वार्थी नीति और ग़लत इरादों ने उन्हें जाल में फंसाकर उनके काम धंधों पर कब्जा जमा लिया। अपने लठ के बल बूते उस भूमि से ही बैदखल कर दिया जिसका की मालिकाना हक प्रकृति का था।
अपने आशियाने उजडे देख आत्म निर्भर लोग वहां से चले गए और अन्य भू भाग पर अपना गांव बसाकर चैन से रहने लगे, लेकिन नई जगह भी दूसरे बलधारी आए ओर उन्हें फिर वहां से बैदखल कर दिया गया। सदियों से आज तक ये खेल चला आ रहा है।
इस पूरे बसने और उजडने के खेल में वे आत्म निर्भर लोग टूट गए। अपने भरण-पोषण के लिए बलधारियों के गुलाम बन गए और बलधारी इन्हें नीचा व छोटा मानने लगे। इस पूरे खेल में सामाजिक विषमताओं की खाई बढती रही। समाज का विखंडन होने लगा। बलधारियों के सलाहकार इस खेल से पूजे जाने लगे तथा बलधारियो के चाटुकार बलधारियो के मुख्य सेवक बन आर्थिक मामलों के कार्यो को करने लगे।
काल बल की परिस्थितियों ने इस खेल को कट्टरता के साथ खेला तथा पूरे समाज की एक तस्वीर बना कर इस खेल की कहानी लिख दी गई।
काल चक्र आगे बढता हुआ इसे आधुनिकता के युग में डालता रहा और बलधारियो ने भी अपना पासा बदला, बल के स्थान पर मीठा जहर काम में लिया। सदियों तक सरे आम लूटपाट का खेल बंद कर अब बंद कमरों में गुलामी की एक नई तस्वीर बनाई।
इस तसवीर में आत्म निर्भरों को कागजी टुकडों में पद प्रतिष्ठा देकर उपाधियों के आभूषणों से नवाजा गया और उनके पैरो मे बेडियां बांधकर उनके अनुसार ही कदम बढ़ाने का फरमान सुनाया।
पृथ्वी के बडे भू भाग पर बडी संख्या में बसे इन आत्मा निर्भर लोगों के सामने बलधारी कम ही संख्या में थे फिर भी इन बलधारियो का विरोध करना किसी के बस में नहीं था। परिणाम यह हुआ कि धरती के सम्पूर्ण भूभाग पर लगभग दो तिहाई भाग पर ये आत्म निर्भर थे जो दास या निर्धन बन गए।
मीठे जहर के नाम पर आधुनिक बलधारियों ने भारी ढंग से इनकी हौसला अफजाई की तथा जन्म से मृत्यु तक की सारी कागजी दुनिया की सुख सुविधा बांट कर अपने आप को इनका मसीहा बनने का नाकाम प्रयास किया।
ये आत्म निर्भर लोग फिर दूसरों के ऊपर आश्रित हो गए। इन्हें अलग पहचान दी गई जैसे यह सब दूसरी दुनिया के लोग हैं और गलती से हमारी दुनिया में आ गए हैं।
यह कहानी नहीं हकीकत की दुनिया की तस्वीर है जिसमें मानव को मानव अपना गुलाम बनाने का खेल बना कर खेलता है ओर कमजोर को ओर भी ज्यादा कमजोर लगातार बनाने की एक कवायद करता है।
सौजन्य : भंवरलाल