सबगुरु न्यूज। परमात्मा का निवास मन के मंदिरों में होता है जहां आस्था उन्हें नवाजती है और मन और आत्मा एक होकर ऐसे प्रेम मे खो जाते हैं कि उन दोनों को अलग अलग होने का अहसास ही नहीं होता है। सुधबुध खोने के यही क्षण परमात्मा या रूहानियत का प्रमाण देते हैं। जहां घृणा ओर नफ़रत की आंधियां नहीं चलती है और न ही स्वार्थो के बादल धर्म व जाति का जलाते हैं।
ऐसे ही मंदिरों में शोर नहीं मचता। दिल की धड़कने भी आस्था के दर्शन के लिए रूक जातीं हैं। जहां आस्था का निर्माण मैले मन से होता है वहां ना तो देव निवास करते हैं और न ही दानव। वहां केवल महाभारत के युद्ध का एक श्रेष्ठ अखाडा बनता है जहां अक्षौहिणी सेना अपनी आहुति धर्म युद्ध में देती है।
उसकी आस्था में देव था। शहर और गांव के गलियारों से दूर। विश्वास के उस वीरानों में जहां ना छल था ना कपट। राजनीति तथा कूटनीति से कोसों दूर। न मंदिरों में ना ही मस्जिदों में। जहां न जाति पांति का बाजार था ना ही धर्म का व्यापार जहां पाप पुण्य की तसवीर ना थी। जहां ना राज था और ना ही कोई घोषणा थी। संघर्ष ओर टकराव की दुनिया से दूर। घृणा व नफ़रत की आंधियां न थी और ना ही अहंकारी खून बहाने का अंहकार।
प्रकृति के उन वनों में जहां शुद्ध हवाएं शरीर को स्पर्श कर आध्यात्मिक आनंद का संचार करती थी। जहां निर्मल जल के झरने मन की निर्मलता को बडाकर आत्मा और मन का अदभुत संगम कराते थे। जहां फूलों की महक अपनी चादर फैलाती हुईं एक रूहानियत का अहसास कराती थी।
वनों के फल एक निष्काम भक्ति का उपहार देते थे। इन सब के बीच आस्था ओर श्रद्धा की उस श्रेष्ठतम देवी की एक झोपड़ी थी। जहां कोई शोर न था केवल दिल की धड़कने मे केवल राम बसे थे। ऐसे ही मन के मंदिरों में बसते हैं श्री राम। शबरी की ऐसी ही कुटिया में जाकर दर्शन देते हैं भगवान।
संत जन कहते हैं कि हे मानव परमात्मा की भक्ति के लिए तेरे मन को मंदिर बना और उसमें कर्म का भगवान बैठाकर जन कल्याण की सामग्री से भोग लगा। उस प्रसाद का वितरण जन कल्याण में कर, निश्चित तेरे इस मन मंदिर में शोर नहीं मचेगा, तेरा जीवन सफ़ल हो जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल