31 दिसंबर की रात नववर्ष मनाना छोडकर अंग्रेजी दास्यता से बाहर निकलें। हिन्दू धर्म सर्वश्रेष्ठ धर्म है, परंतु दुर्भाग्य की बात है कि हिन्दू ही इसे समझ नहीं पाते। पाश्चात्यों के अयोग्य कृत्यों का अंधानुकरण करने में ही अपने आप को धन्य समझते हैं। 31 दिसंबर की रात में नववर्ष का स्वागत और 1 जनवरी को नववर्षारंभदिन मनाने लगे हैं।
इस दिन रात में मांसाहार करना, मद्यपान कर चलचित्र (फिल्मी) गीतोंपर नाचना, पार्टियां करना, वेग से वाहन चलाना, युवतियों से छेडछाड करना आदि अनेक कुप्रथाआें में वृद्धि होती दिखाई दे रही है। फलस्वरूप युवा पीढी विकृत और व्यसनाधीन हो रही है और नववर्षारंभ अशुभ पद्धति से मनाया जा रहा है। स्वतंत्रता के पश्चात भी अंग्रेजों की मानसिक दास्यता में जकडे रह जाने का यह उदाहरण है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्षारंभदिन होने के कारण
1. प्राकृतिक कारण : इस समय अर्थात वसंत ऋतु में वृक्ष पल्लवित हो जाते हैं। उत्साहवर्धक और आल्हाददायक वातावरण होता है। ग्रहों की स्थिति में भी परिवर्तन आता है। ऐसा लगता है कि मानो प्रकृति भी नववर्ष का स्वागत कर रही है।
2. ऐतिहासिक कारण : इस दिन प्रभु श्रीराम ने बाली का वध किया। इसी दिन से शालिवाहन शक आरंभ हुआ।
3. आध्यात्मिक कारण
सृष्टि की निर्मिति : इसी दिन ब्रह्मदेव द्वारा सृष्टि का निर्माण, अर्थात सत्ययुग का आरंभ हुआ। यही वर्षारंभ है। निर्मिति से संबंधित प्रजापति तरंगें इस दिन पृथ्वी पर सर्वाधिक मात्रा में आती हैं। गुढीपूजन से इन तरंगों का पूजक को वर्ष भर लाभ होता है।
साढे तीन मुहूर्तों में से एक : वर्षप्रतिपदा साढे तीन मुहूर्तों में से एक है, इसलिए इस दिन कोई भी शुभकार्य कर सकते हैं। इस दिन कोई भी घटिका (समय) शुभमुहूर्त ही होता है।
वर्षप्रतिपदा, एक तेजोमयी दिन, तो 31 दिसंबर की रात एक तमोगुणी रात
चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के सूर्योदय पर नववर्ष आरंभ होता है। इसलिए यह एक तेजोमय दिन है। किंतु रात के 12 बजे तमोगुण बढने लगता है। अंग्रेजों का नववर्ष रात के 13 बजे आरंभ होता है। प्रकृति के नियमों का पालन करने से वह कृत्य मनुष्यजाति के लिए सहायक और इसके विरुद्ध करने से वह हानिप्रद हो जाता है। पाश्चात्य संस्कृति तामसिक (कष्टदायक) है, तो हिन्दू संस्कृति सात्त्विक है।
कुप्रथा को कुचले, पाश्चात्यों के अंधानुकरण से बचें
पाश्चात्यों का अंधानुकरण अर्थात जीवन का पतन ! : 31 दिसंबर अर्थात स्वैराचार का अश्लील प्रदर्शन! इससे सभ्यता और नैतिकता का अवमूल्यन होकर वृत्ति अधिकाधिक तामसिक बनती है। राष्ट्र की युवा पीढी राष्ट्र एवं धर्म का कार्य करना छोडकर रेन डांस, पार्टियां और पब की दिशा में झुक जाती है।
हिन्दू संस्कृति से जीवन होता है संयमी और संतुष्ट! : हिन्दू संस्कृति द्वारा सिखाए संस्कार, त्यौहार, उत्सव, व्रत, धार्मिक कृत्य आदि से वृत्ति सात्त्विक बनकर जीवन संयमी और संतुष्ट होता है।
पाश्चात्यों की दास्यता से मुक्त होने के लिए यह करें
अंग्रेजों के दास्यत्व से मातृभूमि को मुक्त करने के लिए क्रांतिकारियों ने अथक प्रयत्न किए। हमें भी अपनी संस्कृति पर हो रहे इस आक्रमण का प्रतिकार करना चाहिए। इस हेतु सभी सगे-संबंधी, परिचित और मित्रों को भ्रमणभाष पर लघुसंदेश भेजें – १ जनवरी को नहीं; अपितु वर्षप्रतिपदा पर शुभकामनाएं देकर भारतीय संस्कृतिनुसार नववर्ष मनाएं और हिन्दू संस्कृति के प्रति अभिमान संजोएं।
संकलन : आनंद जाखोटिया, समन्वयक, हिन्दू जनजागृति समिति, राजस्थान (9109139322)