सांसद हुकुम सिंह कहते हैं कि कैराना के हालात पहले ऐसे नहीं थे, लेकिन जब से प्रदेश में सपा सरकार ने कमान संभाली है तब से गुंडागर्दी का आलम चरम पर है। बदमाशों ने कैराना में रंगदारी न देने पर व्यापारियों की हत्या तक कर दी है। व्यापारियों से लूटपाट आम घटना है।
कैराना के आसपास के गांवों में भी बहू-बेटियों की इज्जत सुरक्षित नहीं रह गई है। ऐसे हालात में हिन्दू समाज के सामने पलायन के अलावा क्या विकल्प रह जाता है? जब सरकार ही पीडि़तों की अनसुनी करके उत्पातियों का संरक्षण कर रही हो, तब हालात और भयावह हो जाते हैं।
उत्तरप्रदेश में कानून का राज खत्म-सा हो गया है। पुलिस प्रशासन मूक बना हुआ है। गुंडागर्दी चरम पर है। कैराना से करीब 346 हिन्दू परिवार आए दिन की सांप्रदायिक गुंडागर्दी से आजिज आकर पलायन कर गए, लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं करेंगी। सरकार की अनदेखी का कारण है, वोटबैंक।
हिन्दू परिवारों को परेशान करने वाला समुदाय समाजवादी पार्टी का मतदाता है। इसीलिए सपा सरकार आँखों पर पट्टी बाँधकर बैठ गई है। इतने बड़े पैमाने पर हिन्दू परिवारों का पलायन कोई छोटी घटना नहीं है। यह पलायन कितना खतरनाक साबित हो सकता है, इसे समझने के लिए हमें जम्मू-कश्मीर का इतिहास उलटकर देखना चाहिए।
वहां भी मुस्लिम समुदाय ने हिन्दुओं के सामने ऐसी परिस्थितियां खड़ी कर दी थीं कि उन्हें अपने पुरुखों की जमीन-जायदाद छोड़कर अपने ही देश में निर्वासित होकर रहना पड़ रहा है। कैराना की घटना का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तब स्पष्ट होता है कि यह घटना भी जम्मू-कश्मीर के षड्यंत्र से मेल खाती है। कैराना में हिन्दू कारोबारियों से जबरन हफ्ता वसूला जा रहा है। उनके साथ मारपीट की जा रही है।
बहू-बेटियों का घर से बाहर निकलना मुश्किल कर दिया गया है। यदि वक्त रहते इस तरह के वातावरण को नहीं बदला गया तब वह दिन दूर नहीं होगा जब कैराना सहित उत्तरप्रदेश के अन्य हिस्से जम्मू-कश्मीर में तब्दील हो जाएंगे।
उत्तरप्रदेश के शामली से भारतीय जनता पार्टी के सांसद हुकुम सिंह कहते हैं कि उनके पास 250 हिन्दू परिवारों के पलायन की जानकारी आई थी। लेकिन, जब उन्होंने इस मामले की छानबीन करवाई तब सामने आया कि 346 परिवार समाजकंटकों के आतंक से तंग आकर कैराना छोड़कर चले गए।
उन्होंने पत्रकारवार्ता में बाकायदा इन 346 परिवारों की सूची जारी की है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि यह सिर्फ सांप्रदायिक हिंसा का मामला नहीं है, बल्कि यह कानून व्यवस्था का भी प्रश्न है। उत्तरप्रदेश में कानून व्यवस्था खत्म हो गई दिखाई देती है। लोकप्रिय समाचार पत्र दैनिक जागरण और न्यूज चैनल जी न्यूज ने इस सूची की कैराना जाकर पड़ताल की।
इस पड़ताल में भी हिन्दुओं के पलायन की बात सही साबित हुई है। हालांकि एनडीटीवी और दूसरे न्यूज चैनल यह भी कह रहे हैं कि सूची में शामिल कई हिन्दू परिवार बहुत पहले ही यहां से पलायन कर चुके हैं। सूची में शामिल कुछ नाम ऐसे भी हैं जिनकी कुछ साल पहले मृत्यु हो चुकी है।
यही एनडीटीवी समूह और तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवी उस वक्त यह गणित क्यों नहीं लगा रहे थे, जब बनावटी असहिष्णुता को लेकर अवार्ड वापसी मुहिम चल रही थी। जिनकी हत्या को आधार बनाकर अवार्ड वापस किए जा रहे थे, उनकी मृत्यु भी तो मोदी सरकार के आने से पहले ही हो चुकी थी। जिन राज्यों में हत्या हुई थी, वहां भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं थी। फिर क्यों सहिष्णुता का सारा दोष नरेन्द्र मोदी और भाजपानीत केन्द्र सरकार पर डाला जा रहा था?
मीडिया और बुद्धिजीवियों का यही दोगला चरित्र इस देश की सामाजिक समरसता के लिए खतरनाक है। बहरहाल, 346 परिवारों में 10-50 परिवार भी स्वाभाविक पलायन करने वाले हैं तब भी भय से पलायन करने वाली बड़ी संख्या को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है। यह बात एबीपी न्यूज और आजतक की रिपोर्ट में भी सामने आई है कि दहशत के कारण अनेक परिवारों ने कैराना और उसके आसपास के इलाकों से पलायन किया है।
लेकिन, कुछ बुद्धिजीवी और मीडिया संस्थान इस गंभीर मसले को इसलिए दूसरे दृष्टिकोण से देख रहे हैं क्योंकि कैराना का सच भाजपा सांसद सामने लेकर आए हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि अधिक संख्या में पलायन करने वाले पीडि़त हिन्दू परिवार हैं।
सांसद हुकुम सिंह कहते हैं कि कैराना के हालात पहले ऐसे नहीं थे, लेकिन जब से प्रदेश में सपा सरकार ने कमान संभाली है तब से गुंडागर्दी आलम चरम पर है। बदमाशों ने कैराना में रंगदारी न देने पर व्यापारियों की हत्या तक कर दी है। व्यापारियों से लूटपाट आम घटना है। कैराना के आसपास के गांवों में भी बहू-बेटियों की इज्जत सुरक्षित नहीं रह गई है।
ऐसे हालात में हिन्दू समाज के सामने पलायन के अलावा क्या विकल्प रह जाता है? जब सरकार ही पीडि़तों की अनसुनी करके उत्पातियों का संरक्षण कर रही हो, तब हालात और भयावह हो जाते हैं। व्यापारी पुलिस के पास अपनी पीड़ा लेकर गए, लेकिन वहां से उन्हें निराश ही लौटना पड़ा है।
उत्तरप्रदेश में पुलिस के व्यवहार को समझने के लिए मथुरा कांड का अध्ययन कर लेना चाहिए। यहाँ पुलिस की आँखों के सामने रामवृक्ष यादव ने जवाहरलाल नेहरू पार्क में हथियारबंद लोगों की भीड़ जमा कर ली थी। बहरहाल, तुष्टीकरण और वोटबैंक के खेल में इस तरह हिन्दू समाज को मरने-पिटने के लिए छोड़ देना सपा सरकार के अमानवीय चेहरे को उजागर करता है।
कितनी विडम्बना है कि जिस प्रदेश में मुस्लिम नेता की भैंस खो जाती है तो उसे ढूंढऩे के लिए पूरी ताकत लगा दी जाती है, लेकिन उसी प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा से पीडि़त होकर पलायन करने वाले हिन्दू परिवारों की कोई सुनवाई नहीं है।
गौरतलब है कि सपा सरकार में हिन्दुओं के सामने संकट खड़े होना और कानून व्यवस्था का ध्वस्त हो जाना आम बात है। उत्तरप्रदेश में हिन्दू लगातार सांप्रदायिक हिंसा का शिकार होता रहा है। लेकिन, यह सांप्रदायिक हिंसा किसी मानवाधिकारियों, बुद्धिजीवियों और सेकुलर नेताओं को दिखाई नहीं देती है।
उत्तरप्रदेश में जब से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा सरकार की वापसी हुई है तब से सांप्रदायिक दंगों में जमकर बढ़ोतरी देखी गई है। इन सांप्रदायिक दंगों में सर्वाधिक नुकसान हिन्दू समाज को उठाना पड़ा है। वर्ष 2012 में उत्तप्रदेश में 118 सांप्रदायिक घटनाएं हुईं थीं, जिनमें 39 लोग मारे गए थे और 500 घायल हुए थे।
जबकि वर्ष 2013 में 247 सांप्रदायिक संघर्ष हुए थे, जिनमें 77 लोगों की जान चली गई। वर्ष 2014 में 133 सांप्रदायिक दंगे हुए थे, जिनमें 26 लोगों की जान गई और 347 लोग घायल हुए। वर्ष 2015 के हालात भी ठीक नहीं रहे।
सांप्रदायिक दंगों के मामले में वर्ष 2015 में भी उत्तरप्रदेश शीर्ष पर रहा। यह आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि उत्तरप्रदेश में सपा सरकार ने उपद्रवियों को खुली छूट दे रखी है। इसलिए कैराना में हिन्दू परिवारों का पलायन न केवल उत्तरप्रदेश बल्कि समूचे देश के लिए गहरी चिंता का विषय होना चाहिए। केन्द्र सरकार को उत्तरप्रदेश सरकार से इस मसले पर जवाब मांगना चाहिए।
लोकेंद्र सिंह