लखनऊ। गरीबी व बीमारी का बाढ़ से गहरा रिश्ता है। उत्तर प्रदेश में बाढ़, बीमारी, गरीबी एवं अशिक्षा की वजह से बीमारियां बहुत हैं। स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का अभाव है।
सुविधाओं की कमी एवं गरीबी से महंगे हो चुके इलाज अब आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं। लोग बीमार बने रहने को मजबूर हैं।
चाहे पूर्वांचल में जापानी इन्सेफलाइटिस (जेई) का प्रकोप हो या बुंदेलखंड क्षत्र में होने वाली गंभीर बीमारियां, सभी के निदान में महंगा इलाज बाधक है। ऐसे में होमियोपैथी पद्धति से होने वाला इलाज सभी तक आसानी से पहुंच रखता है।
मलेरिया, फाइलेरिया, कुपोषण, टाइफाइड, पेचिस, दस्त, पीलिया, खसरा, चिकन पाॅक्स, चर्म रोग आदि के सस्ती और गुणवत्तापूर्ण इलाज के बारे में होमियोपैथी चिकित्सक डाॅ. राना प्रताप यादव।
इंसेफेलाइटिस
पूर्वांचल में जापानी इन्सेफलाइटिस से बच्चों की असमय मौत का कहर जारी है। फ्लेवी वायरस से होेने वाली यह बीमारी क्यूलेक्स विसनोई मादा मच्छर के काटने से फैलती है। यह विशिष्ट मच्छर इंसेफेलाइटिस को पक्षियों तथा जानवरों विशेषकर सुअरों के माध्यम से फैलाता है। यह रोग एक वर्ष से 15 वर्ष के बच्चों को ज्यादा प्रभावित करता है।
लक्षण:
-तेज बुखार के साथ सिर दर्द
-मांपेशियों में ऐंठन
-मेरुदण्ड एवं गर्दन की मांशपेशियों में ऐंठन
-अत्याधिक बदन दर्द
-आंखों के सामने अंधेरा
-उल्टी होना
-अत्याधिक कमजोरी
-मानसिक असंतुलन
-बेहोशी, चक्कर, दृष्टि सम्बन्धी परेशानी, पक्षाघात
बचाव:
-साफ-सफाई रखें
-मच्छर न पनपने दें और मच्छरदानी का प्रयोग करें
-सुअर पालन आबादी से बाहर करें
उपचार:
शुरुआती दौर में ही पता चलने पर पूर्ण इलाज संभव है। बेलाडोना 200, कैलकेरिया कार्ब 200 एवं ट्यूबरकुलिनम 1एम शक्ति काफी कारगर हैं।
सलाह:
-चिकित्सकीय परामर्श के साथ जरूरी परीक्षण कराने के बाद दवा लें
फाइलेरिया :
फाइलेरिया एक आम समस्या है। खासकर तराई क्षेत्रों में इसके मरीज अधिक हैं। यह माइक्रोफाइलेरिया नाम के निमोरोड जाति के परजीवी की वजह से होती है। माइक्रोफाइलेरिया एक लम्बे धागे नुमा परजीवी होता है, जो क्यूलेक्स मच्छर के द्वारा एक रोगी से दूसरे में फैलता है। समान्यतः रोगी के रक्त में माइक्रोफाइलेरिया रात में ज्यादा होते हैं और रोग संवाहक मच्छर रात में रोगी व्यक्ति के काटने के बाद जब दूसरे को काटता है, तब संक्रमण फैलता है।
लक्षण:
संक्रमित मच्छर के काटने के 6 से 16 माह या इससे अधिक समय के बाद इस रोग के लक्षण प्रकट होते हैं
-ठण्डक के साथ तेज बुखार, सिर दर्द, थकान, जी-मिचलाना, बदन दर्द, प्यास, कमजोरी, एक निश्चित अंतराल पर बुखार
-लिम्फ ग्रंथियों में सूजन, कड़ापन
-अण्डकोषों में सूजन, कड़ापन, दर्द, हाइड्रोसील, पैरों में सूजन
-कभी-कभी हाथों में भी सूजन
उपचार:
-दवाइयां रोगी के लक्षण के आधार पर दी जाती हैं। इसलिए दवाइयां केवल प्रशिक्षित चिकित्सकों की सलाह से लें। इलेइस जी, हाइड्रोकोटाइल, एनकार्डियम, माइरिस्टिका, आसैनिक, साइलिसिया, एसिड फ्लोर आदि दवाएं इलाज में कारगर हैं।
मलेरिया :
मलेरिया मादा एनाफलीज मच्छर के द्वारा एक रोगी से दूसरे मंे फैलता है। यह प्लाज्मोडियम जीवाणु की वजह से होता है।
लक्षण:
-कंपकपी के साथ बुखार आता है, जो पसीने के साथ उतरता है
-सिर दर्द, जोड़ों में दर्द, कमजोरी की शिकायत
-एक अंतराल पर बुखार आता रहता है
बचाव:
-घर के बर्तनों, डिब्बों, कूलर आदि में मच्छर न पैदा होने दें
-पूरे बांह के कपड़े पहनें
-मच्छररोधी तेल व क्रीम का प्रयोग करें, मच्छरदानी लगाकार सोयें
उपचार:
-आर्सेनिक, चाइना, मलेरिया आफेसेनलिस, बेलाडोना, चिननम सल्फ, चिननम आर्स, रस टाक्स, ब्रायोनिया आदि औषधियां कारगर हैं
सलाह:
-प्रशिक्षित चिकित्सक से इलाज कराएं
पीलिया :
पीलिया अथवा जांडिस, हिपेटाइटिस वाइरस के संक्रमण से होता है। यह संक्रमित भोजन, पानी एवं कटे फल एवं पेय पदार्थों के सेवन के कारण होने वाली बीमारी है।
लक्षण:
-आंख, त्वचा एवं पेशाब का रंग पीला होना
-मल का रंग मिट्टी जैसा होना
-हल्का बुखार, मिचली, उल्टी, भूख न लगना, लीवर में सूजन, पेट दर्द, थकान होना
बचाव:
-बाजार के खुले फल, पेय, भोजन आदि का सेवन न करें
-व्यक्तिगत स्वच्छता का ध्यान रखें
-हल्का, सुपाच्य एवं गैर वासयुक्त भोजन लें
-भरपूर आराम करें
उपचार:
-उपचार में चाइना, चिलिडोनियम, लाइकोफोडियम, ब्रायोनिया आदि दवाइयां कारगर हैं
सलाह:
-प्रशिक्षित चिकित्सक की सलाह के बगैर दवाएं न लें