नई दिल्ली। मुंबई की एक मीडिया कंपनी के बाद अब कोच्चि के मीडिया समूह ‘मातृभूमि’ ने महिला कर्मचारियों को उनकी माहवारी (पीरियड) के पहले दिन सवैतनिक अवकाश (पेड लीव) देने का ऐलान किया है और इसके बाद देशभर में ‘माहवारी छुट्टी’ लागू करने-न करने पर बहस छिड़ गई है।
क्या ऐसी छुट्टी देना सभी संस्थानों/प्रतिष्ठानों/कंपनियों को मंजूर होगा? देश में महिला सशक्तिकरण की बातें करने वाला एक बड़ा तबका तो इस छुट्टी का विरोध जता रहा है। मगर महिलाओं का एक ऐसा वर्ग भी है, जो अपने स्वास्थ्य को तवज्जो देते हुए इस पहल के समर्थन में खड़ा है।
माहवारी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। महीने के ये मुश्किल भरे चार से पांच दिन महिलाओं के लिए शारीरिक एवं मानसिक रूप से थका देने वाले होते हैं, लेकिन क्या थकावट और दर्द इतना असहनीय होता है कि इसके लिए बाकायदा छुट्टी का बंदोबस्त किया जाए?
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की नेता और सामाजिक कार्यकर्ता वृंदा करात ने आईएएनएस से कहा कि सभी कंपनियों को अपनी छुट्टी के चार्ट में पीरियड्स लीव का विकल्प रखना चाहिए, ताकि जरूरतमंद महिलाएं इसका लाभ उठा सकें। इसका वैकल्पिक तौर पर इस्तेमाल किया जाना चाहिए, लेकिन मैं इस छुट्टी को अनिवार्य किए जाने के पक्ष में नहीं हूं।
वैकल्पिक तौर पर ही सही, माहवारी छुट्टी देने का नियम लागू हो जाने पर कंपनियों में महिलाओं की नियुक्ति में दिक्कतें आ सकती हैं। हो सकता है, नियोक्ता तब महिलाओं की तुलना में पुरुषों को काम पर रखने को ज्यादा तरजीह दें। सरकार इससे पहले मातृत्व अवकाश की अवधि 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर चुकी है और अब माहवारी के दिनों में भी पेड लीव देना पड़े, तो महिलाओं को नौकरी कौन देगा?
इस बात से इत्तेफाक रखते हुए दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने कहा कि मैं इससे सहमत नहीं हूं। आज महिलाएं रोज नई ऊंचाइयों को छू रही हैं। ऐसे में इस तरह के दकियानूसी नियम थोपे जाने से कार्यालयों में महिलाओं की भागीदारी को चोट पहुंचेगी।
महिलाएं शारीरिक रूप से मजबूत हैं और माहवारी की यह प्राकृतिक प्रक्रिया हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा है। ऐसे में माहवारी छुट्टी का नियम महिलाओं को शारीरिक रूप से कमजोर मानने वाली सोच पर मुहर लगाने जैसा है।
भारत हालांकि पहला देश नहीं है, जहां किसी कंपनी ने पहली बार माहवारी छुट्टी देने की पहल की है। जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, इंडोनेशिया और इटली में माहवरी के दिनों में पेड लीव का नियम है। इटली पहला यूरोपीय देश है, जहां इस तरह का फैसला लिया गया है। रूस और आस्ट्रेलिया में भी जल्द यह नियम लागू होने जा रहा है।
भारत में माहवारी के दिनों में महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर आंकड़े चौंकाने वाले हैं। भारत में 10 में से तीन लड़कियों को अपनी पहली माहवारी के बारे में कोई जानकारी नहीं होती। इन मुश्किल दिनों में अधिक शिक्षित महिलाओं की भागीदारी भी कार्यस्थलों पर घटती देखी गई है।
मुंबई की कंपनी की इस पहल की सराहना करते हुए महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले एनजीओ ‘सखी’ की कार्यकर्ता सविता कहती हैं कि मुझे समझ नहीं आता कि इसका विरोध क्यों हो रहा है। माहवारी के दिनों में महिलाओं को दर्द होना स्वाभाविक है और यदि किसी कंपनी ने महिलाओं को इन मुश्किल दिनों में अवकाश की सुविधा दी है तो इसमें गलत क्या है?
वह आगे कहती हैं कि हममें से अमूमन कई महिलाएं इन दिनों में ऑफिस जाना पसंद नहीं करतीं और यदि जाती हैं तो वे ठीक तरह से काम नहीं कर पातीं। ऐसे में यदि उनकी कंपनी इस तरह के अवकाश की सुविधा दे रही है, तो इसमें महिला सशक्तीकरण के राह में रोड़े अटकाने जैसा कुछ भी नहीं है।
गुड़गांव की टेक कंपनी विप्रो में काम करने वाली सुनीता माथुर ने कहा कि मैं चाहती हूं कि मुंबई की इस कंपनी की तर्ज पर देशभर के कार्यालयों में इस तरह की व्यवस्था हो, ताकि हमें कुछ तो राहत मिले। इससे हम कमजोर साबित नहीं होंगी।
दिल्ली से महिलाओं के लिए प्रकाशित हो रही एक पत्रिका में कार्यरत ऋचा शर्मा कहती हैं कि इसमें कुछ गलत तो नहीं है, लेकिन बेहतर स्थिति यह होगी कि इसे वैकल्पिक तौर पर शुरू किया जाए, जो महिलाएं इस तरह की छुट्टी का लाभ उठाना चाहती हैं, उन्हें यह मिलनी चाहिए.. वैसे, मुझे लगता है कि सभी महिलाएं इस छुट्टी का लाभ उठाना चाहेंगी।