कई बार बड़े बुजुर्ग बचपन में समझते रहते हैं की ज्यादा सुपारी नहीं खानी चाहिए इससे तुतलाना शुरू हो जाता हैं। और कई बार हकलाना और तुतलाने की बीमारी बचपन से रहती हैं जिसका कोई इलाज़ नहीं हैं। इन बीमारियों से ग्रसित व्यक्ति बोलने में शर्माता है, थोड़ा घबराता है। बोलनें में शर्मानें और घबरानें का कारण उसका तुतलाना और हकलाना है।
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इस बीमारी से त्रस्त व्यक्ति किसी अनजान के सामने बोलने में शर्म महसूस करता है। उसे ऐसा लगता है की बोलनें पर लोग उसपर हसेंगे। हकलाना और तुतलाना एक ऐसी बिमारी है जो छिपाए नहीं छिपती। हमारे समाज में कुछ असामाजिक तत्व ऐसे भी है जो इन बीमारियों का मजाक उड़ाते है। इन बीमारियों से ग्रसित व्यक्ति खुद को हीन या छोटा महसूस करता हैं।
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आपको इस प्रकार की बीमारी से झूझना न पड़े और आपका कोई मजाक नहीं बने इसके लिए कुछ उपाय बताते है जिनसे आपको काफी हद तक फायदा हो सकता हैं।
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बच्चे यदि एक ताजा हरा आँवला रोजाना कुछ दिन चबाएँ तो तुतलाना और हकलाना मिटता है। जीभ पतली और आवाज साफ आनें लगती है। मुख की गर्मी भी शांत होती है। बादाम की गिरी सात, काली मिर्च सात, दोनों को कुछ बूँदें पानी के साथ घिसकर चटनी सी बना लें और इसमें जऱा-सी मिश्री पिसी हुई मिलाकर चाटें। प्रात: खाली पेट कुछ दिन लें। स्पष्ट नहीं बोलने और काफी ताकत लगाने पर भी हकलाहट दूर न हो तो दो काली मिर्च मुँह में रखकर चबाएँ-चूसें। यह प्रयोग दिन में दो बार लंबे समय तक करें।
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