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साहब, मजबूरी है पापी पेट रस्सी पर चलाता है - Sabguru News
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साहब, मजबूरी है पापी पेट रस्सी पर चलाता है

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साहब, मजबूरी है पापी पेट रस्सी पर चलाता है

human story of minor girl

खंडवा। खुशी से कब कोई मासूम यह करतब दिखाता है। यह मजबूरी है पापी पेट रस्सी पर चलाता है। बाबूजी फेको ना पैसा। पापी पेट का सवाल है? जिंदगी दांव पर लगाकर छह साल की यह बच्ची परिवार का पेट भरने की जुगत में दिखी। इंसानियत जताने वाले उसे नोट देकर फर्ज पूरा करते नजर आए।

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रस्सी पर सायकल का रिंग और उस पर बैलेंस। सबको दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर रहा था। सवाल एक नहीं, सबके मन में हजारों एक साथ उठ रहे थे।

त्यौहार के दिन दधीच पार्क जैसे व्यस्त इलाके या कहें सरे बाजार छह साल की मासूम को देखकर हर कोई ठिठक गया। ऐसे खेल पहले होते थे। अब तो हमारा देश और सरकार बालिकाओं के प्रति काफी जागरूक है। फिर कोई क्यों नहीं बोला? मंगलवार दोपहर को दधीच पार्क में चार बांसों पर रस्सी बंधी थी।

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उस पर एक छह साल की बच्ची सायकल के रिंग पर बैलेंस बनाकर इस पार से उस पार हो रही थी। बैलेंस के लिए हाथ में बांस भी था। नीचे माँ-बाप लोगों से तालियाँ बजवा रहे थे। बच्ची पैसे फेंकने की अपील कर रही थी। खुशी से यह सब कौन करता है? यह तो पापी पेट का सवाल था।

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बच्ची को ट्रेंड कर परिजनों ने ऐसा करने पर मजबूर कर दिया। उसे तो केवल यह आभास है कि लोग पैसा देंगे। उसके परिवार का पेट भरेगा। छह साल की मासूम को स्कूल में होना चाहिए। उसके हाथ में कलम व किताब होनी चाहिए। परिजन कैसे उसके पसीने की कमाई खाने लगे? ऐसी कौन सी मजबूरी माँ-बाप की रही होगी कि इतनी मासूम को ट्रेंड कर जिंदगी खतरे में डाल दी?

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समाजसेवी सुनील जैन ने इस पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि विगत चार-पांच दिनों से शहर में मासूम बच्चे इस प्रकार जान जोखिम में डालकर पापी पेट के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। मोदी सरकार एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान बालिकाओं के प्रति काफी गंभीर है।

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फिर खंडवा में क्यों प्रशासन ने ऐसा होने दिया? क्या समाज कल्याण विभाग नींद में है। चाइल्ड पर काम करने वाले शहर में दर्जनभर एनजीओ हैं। वे क्या कर रहे थे? सरे बाजार इस तरह के बालिकाओं पर अत्याचार छोटी बात नहीं है। भले परिजनों का पेट भर रहा हो। लेकिन बच्ची को जरिया बनाकर ऐसा करवाना भी बाल अपराध या अत्याचार की श्रेणी में आता है।

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बचपन हर गम से अंजाना होता है, लेकिन गरीबी की मार बहुत सारे बच्चों को छोटी उम्र में ही दो जून की रोटी कमाने के लिए ऐसे काम करने को मजबूर कर देती है जिसे देखकर हम और आप हैरत में पड़ जाते हैं।सड़क के किनारे अकसर छोटे मासूम बच्चे जिस तरह के कारनामे दिखाते मिल जाते हैं।

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वह आपके और हमारे वश के बाहर की बात है। रस्सी पर करतब दिखाते इन बच्चों को जब आसपास से गुजरने वाले लोग देखते हैं तो बिना पूरा खेल देखे वे यहां से निकल नहीं पाते।पेट की खातिर रोज मौत के मुंह में जाती है यह बच्ची। दधीच पार्क में रस्सी पर अपने करबत दिखाती छह साल की बच्ची भी रोटी जुटाने की जद्दोजहद में अपने परिवार के साथ इस काम को अंजाम देती दिख जाती है।

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आज वह यहां है। कल कहां होगी? किसी मालूम नहीं। नया क़स्बा, नया शहर, नया प्रदेश, कारनामा वही पुराना। हवा में लहराती रस्सी पर कई तरह की कलाबाजियां।वह कभी एक पैर में बांस फंसाकर रस्सी पर कदम आगे बढ़ाती है तो कभी रिंग में पैर फंसाकर। इस रस्सी के एक सिरे से दूसरे सिर तक वह हवा में लहराते हुए।

एक लाठी के सहारे संतुलन बनाते हुए पहुंच जाती है। इसके बाद लोग ताली बजाते हैं और भीड़ में से कुछ लोग रुपए देने उसके पास पहुंच जाते हैं। दो पल ठहरने के बाद यह बच्ची एक बार फिर वापस मुड़ती है और रस्सी के दूसरे सिरे पर पहुंचने के लिए चलना शुरू कर देती है।

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