भारतीय परम्परा है, की सुहागन महिलाएं, मांग सिंदुर भरे, गले में मंगलसुत्र पहने और हाथों में चुड़िया। इतना ही नहीं भारतीय महिलाएं तो पति की लंबी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत तक रखती हैं।
ऐसे में इसके ठीक उल्ट उत्तर प्रदेश के देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर तथा बिहार के कुछ हिस्सों में महिलाएं पति के जिंदा होते हुए भी विधवाओं वाला जीवन जीती है। जी हां, इस इलाके में पति की लम्बी उम्र के लिए एक अनोखी परंपरा है। जिसके तहत इन महिलाओं को कुछ समय के लिए सुहाग की सभी चीजों को त्याग कर बिलकुल विधवा वाला जीवन व्यतित करना पड़ता है।
क्या है परम्परा
असल में देवरिया, गोरखपुर और बिहार के इन इलाकों में गछवाहा समुदाय रहता है। जिनका मुख्य काम है ताड़ के पेड़ से ताड़ी निकालना। 50 फीट से भी ज्यादा ऊंचे पेड़ों पर चढ़कर ताड़ी निकालना बहुत जोखिम भरा होता है। ताड़ी निकालने का काम चैत्र मास से सावन तक तीन महीने किया जाता है। गछवाह महिलाएं इन चार महीनों में न तो अपनी मांग में सिंदूर भरती हैं और न ही शृंगार करती हैं। वह अपने सुहाग की सभी निशानियां देवी के पास रखकर अपने पति की सलामती की दुआ मांगती हैं।
तरकुलहा गछवाहों की प्रमुख देवी मानी जाती हैं तथा उनका मंदिर गछवाहों का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। ताड़ी का काम खत्म होने के बाद सभी गछवाह महिलाएं नागपंचमी के दिन तरकुलहा देवी के मंदिर में एकत्रित होती हैं तथा पूजा करने के बाद अपनी मांग भरती हैं। गछवाहों में यह परम्परा कब से चली आ रही है इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। गछवाहों का कहना है कि वह इस परम्परा के बारे में अपने पूर्वजों से सुनते आ रहे हैं। वैसे हिन्दू धर्म में किसी महिला सुगहा चिन्ह को छोडऩा अपशगुन माना जाता है।