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मैं खुद को आदर्श हीरोइन नहीं मानती : कंगना रनौत - Sabguru News
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मैं खुद को आदर्श हीरोइन नहीं मानती : कंगना रनौत

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मैं खुद को आदर्श हीरोइन नहीं मानती : कंगना रनौत
I don't subscribe to quintessential heroines, says Kangana Ranaut
I don’t subscribe to quintessential heroines, says Kangana Ranaut

नई दिल्ली। अभिनेत्री कंगना रनौत खुद को रील और रियल लाइफ की आदर्श व खास श्रेणी की हीरोइन नहीं मानती हैं। वह अपना जीवन अपनी पसंद के मुताबिक जीती हैं, लेकिन मानती हैं कि 21वीं सदी में भी महिलाओं को अपनी आवाज उठाने में मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं।

कंगना से जब पूछा गया कि ऐसी कौन सी चीजे हैं, जो लड़कियां उनके जीवन से सीख सकती हैं, तो उन्होंने कहा कि मैं हमेशा खुद को प्राथमिकता देती हूं। मैं उस सिद्धांत पर नहीं चलती, जिसमें कहा जाता है कि अच्छी लड़कियों को अपने बारे में नहीं सोचना चाहिए और वे सभी बलिदान देने के लिए हैं। मेरा जीवन मेरा है और इसे अपने लिए जीना चाहती हूं।

उन्होंने कहा कि मैं अपनी क्षमता का उपयोग करना चाहती हूं और खुद को जानना चाहती हूं। यह केवल मेरे भाई, बेटे, पति या मां के लिए नहीं है। मैं उन महानतम नायिकाओं की श्रेणी में शामिल नहीं हूं जो सबसे महान भारतीय महिला हैं और हर किसी को खुद से पहले रखती हैं और सबसे आखिर में खुद के बारे में सोचती हैं।

कंगना अपने निजी व पेशेवर जीवन के संघर्ष पर बेबाकी से बात करती हैं। इनकी बेबाकी व बहादुरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने बतौर फिल्म उद्योग का हिस्सा होकर फिल्म उद्योग में खास रसूख रखने वाले फिल्मकार करण जौहर को वंशवाद का ध्वजवाहक तक कह दिया था।

उनके लिए समाज की कड़वी सच्चाई का सामना करना कितना चुनौतीपूर्ण होता है? इस सवाल पर कंगना कहती हैं, एक छोटे शहर से यहां आना निश्चित रूप से बहुत ही चुनौतीपूर्ण था, जो आकांक्षी महिलाओं, खासकर महत्वाकांक्षी महिलाओं के लिए बहुत सहिष्णु नहीं है। अगर आप महत्वाकांक्षी हैं तो आपको एक खलनायिका के रूप में देखा जाता है। अगर आप अपना खुद पैसा कमाना चाहती हैं या आप किसी पर निर्भर नहीं होना चाहती हैं।

उन्होंने आगे कहा कि जो महिलाएं अपनी पसंद से चलती हैं और जो अपने अधिकारों के लिए लड़ती हैं, उन्हें हमेशा विद्रोहियों के रूप में देखा जाता है। कंगना ने कहा कि मैं खुद का आकलन अपनी सहजता व लड़ने की भावना से नहीं करती हूं।

वह मानती हैं कि 21वीं सदी में भी महिलाओं के लिए अपनी आवाज उठाने में मुश्किलें आती हैं। उन्होंने कहा कि यह बहुत मुश्किल है। मध्यकालीन सामाजिक मानदंड कुछ लोगों के लिए बहुत ही सुविधाजनक हैं, इसलिए इससे महिलाओं और कुछ पुरुष भी परेशान होते हैं।