भारत ने हाल ही में आयरन फीस्ट 2016 नामक वायू सेना का युद्धाभ्यास किया जिसमें भारत ने अपनी वायु शक्ति को प्रदर्शन किया।
इसमें दोराय नहीं कि भारत विश्व में उभरती हुई आर्थिक व सैन्य ताकत है परंतु जिस तरह से हम आर्थिक उन्नति कर रहे है। उसकी तुलना में हमारी सैन्य प्रगति काफी धीमी है। सैन्य आधुनीकीकरण की मंथर गति के कारण हमारी वायू सेना के पास अधिकृत क्षमता 42 स्क्वाड्रन से घटकर 35 स्क्वाड्रन रह गई है।
इसके अलावा अत्यंत पुराने पड चुके मिग 21 व मिग 27 विमानों की सेवा अवधि तेजी से समाप्ति की ओर होने के कारण इनकी डी कमिशन प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है। इस बीच फ्रांस से 4 टीएच जनरेशन के राफेल विमान की डील अभी तक तय नहीं हो पाना चिंता का विषय है।
स्वदेसी हल्के लडाकू विमान तेजस के वर्तमान संस्करण का मानदंडों पर खरा नहीं उतर पाना भी वायू सेवा की ताकत को बढने से रोके हुए हैं। तेजस को वायूसेना के बेडे में शामिल किए जाने में दो से चार साल का समय ओर लग सकता है।
दूसरी ओर हमारा पडोसी देश चीन अत्यंत उन्नत सुखोई 35 रूस से हासिल करने में सफल रहा है। इसका रडार हमारे सुखोई 30 एमकेआई से अधिक उन्नत और आधुनिक है। इन हालात के चलते भारत को अपने पुराने पड चुके विमानों को यूरोपियन एईएसए रडार और लेजर गाईडेड वैपंस सिस्टम से शीघ्रातिशीघ्र उन्नत करने की आवश्यकता है।
इतना ही नहीं बल्कि रूस के साथ सुखोई 50 जैसे पांचवीं पीढी के अत्याधुनिक स्टैल्थ विमान शीघ्र विकसित कर हासिल करने पर जोर देना होगा। यहां यह बताना जरूरी है कि अमरीका सहित अन्य देश पांचवीं पीढी के विमान अपनी वायूसेना में शामिल करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर चुके हैं। पडोसी देश चीन भी तेजी से इसके विकास में लगा हुआ है।
खासकर पडोसी देशों के सैन्य परिपेक्ष्य को ध्यान में रखकर हमें हमारी वायू सैन्य क्षमताओं को तेजी से विकसित करना होगा। हमारी स्क्वाड्रन क्षमता कम न हो इसका भी ध्यान रखते हुए नए युद्धक विमानों की खरीद व उन्हें हासिल करने की प्रक्रिया को गति देना अत्यावश्यक हो गया है।