जगदलपुर। वैदिक पंरपरा और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार अश्विन कृष्णपक्ष प्रतिपदा अर्थात अश्विन महीना से आमावस्या तक को पितृपक्ष या महालया पक्ष कहा गया है। माता-पिता एवं अपने परिजनों को मरणोपरांत इस अवधि में विधिवत श्राद्धकर, पिंडदान कर अपने पूर्वजों को याद किया जाता है।
मान्यता अनुसार श्राद्ध कर्म तथा पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का सहज और सरल मार्ग माना गया है। पितृपक्ष की शुरूवात 28 सितंबर से हुयी तथा यह 12 अक्टूबर पितृमोक्ष आमावस्या तक जारी रहेगा। इसके पश्चात नवरात्र प्रारंभ हो जाएगी।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पिंडदान, श्राद्ध का कार्य अपने पूवर्जों के मोक्ष प्राप्ति के लिए किये जाने की प्रथा है। बस्तर अंचल में निवासरत ब्राम्हणों द्वारा अपने पूवर्जों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पितृपक्ष के दौरान प्रति दिन सुबह तुलसी चौरे के सामने रंगोली अंकित कर और दातून व पानी रख कर विधिवत पूजा अर्चना की जाती है।
यह कार्य पितृ पक्ष शुरू होने के साथ ही प्रारंभ किया जाता है। यह प्रतिदिन पितृ मोक्ष आमावस्या तक अनवरत जारी रहेगा। 28 सितंबर से लेकर 12 अक्टूबर के मध्य एक दिन ब्राम्हणों को श्राद्ध स्वरूप भोजन करवा कर पितृपक्ष का परायण किया जा रहा है। यह परंपरा शदाब्दियों से चली आ रही है, जो आज भी जारी है। पिंडदान और श्राद्ध मोक्ष प्राप्ति का सहज और सरल मार्ग माना जाता है।
वैसे तो देश के कई स्थानों पर पिंडदान किया जाता है, किंतु बिहार के गया में पिंड दान का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भस्भासुर के वंशजों में गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रम्हाजी से यह वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएं।
यह वरदान मिलने के बाद स्वर्ग की जन संख्या बढऩे लगी और सब प्रकृति के नियमों के विपरीत होने लगा। लोग बिना भय के पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन से पापमुक्त होने लगे।
प्रकृति के नियमों के विपरीत चल रहे इस कार्य को विराम लगाने के लिए देवताओं ने यज्ञ करने हेतु गयासुर से पवित्र स्थान की मांग की, गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया। इसके बाद से ही बिहार के गया में पिंडदान का खास महत्व माना जाता है।
पितृपक्ष के दौरान पितृों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए किये जाने वाले अनुष्ठान बस्तर जिले में निवासरत 360 घर आरण्यक ब्राम्हण समाज के प्रत्येक परिवार में देखने को मिल सकते हैं।