Warning: Undefined variable $td_post_theme_settings in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/news/wp-content/themes/Newspaper/functions.php on line 54
india and Mozambique enjoy close and friendly relations
Home Headlines मोजाम्बिक से हिंदमहासागर में सशक्त भारत

मोजाम्बिक से हिंदमहासागर में सशक्त भारत

0
मोजाम्बिक से हिंदमहासागर में सशक्त भारत
india and Mozambique enjoy close and friendly relations
india and Mozambique enjoy close and friendly relations
india and Mozambique enjoy close and friendly relations

भारतीय वैश्विक नेता महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से खासे सम्बंध रहे हैं. उस नाते से भारत में सदैव ही दक्षिण अफ्रीका का व अफ्रीका में महात्मा गांधी का सशक्त व सम्मानीय उल्लेख होता रहा है। इस स्थिति के बाद भी साढ़े तीन दशक के बाद नमो के रूप में कोई भारतीय प्रधानमंत्री दक्षिण अफ्रीका पहुंचा है यह आश्चर्य का विषय ही है।

नरेंद्र मोदी की इस अफ्रीकी यात्रा के इसके अपनें सन्देश प्रसारित होंगे। इसके पूर्व वर्ष 1982 में भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी मोजाम्बिक व केन्या दौरे पर गई थी। समकालीन रूप से औपनिवेशिक शासन को झेलने वाले भारत और दक्षिण अफ्रीकी देश के वैचारिक सरोकार स्वतंत्रता के बाद के समय में एक जैसे हुआ करते थे जो बाद के दशकों में अलग होते चले गए। भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की यात्रा दक्षिण अफ्रीकी देशों में इस भाव को दूर करेगी कि भारत की ओर से पहल का अभाव होता है।

अब भारतीय पहल हो गई है और सशक्त हुई है। गत वर्ष भारत अफ्रीका शिखर सम्मेलन के समय ही नरेंद्र मोदी ने भारत के लिए अफ्रीका के महत्त्व को रेखांकित कर सम्बंधों के इस दौर प्रारंभ कर दिया था. इस भारत अफ्रीका फोरम समिट में 40 अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए थे।

इसके बाद भारतीय अफ्रीकी नीति को मजबूती देनें के लिए भारतीय उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी अफ्रीका गए थे, फिर भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी इन देशों की यात्रा पर गए और अब क्रियान्वयन की प्रक्रिया को प्रारंभ करते हुए नरेंद्र मोदी अफ्रीका पहुंचे हैं।

भारत और अफ्रीकी देशों के मध्य किसी भी प्रकार के मतभेद या परस्पर टकराव नहीं होनें के बाद भी स्वतंत्रता प्राप्ति के सात दशकों तक अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार का न होना निराशाजनक तो था ही, साथ साथ यह एक प्रकार की चूक को भी दर्शाता था।

विशेषतः जब भारत वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण भूमिका की खोज में सतत लगा रहा है तब इस प्रकार की चूक को सुधारना ही भारत के हित में होगा इस बात को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालते ही समझ लिया था उसी का परिणाम है कि हाल ही के दो भारतीय शासनाध्यक्षों के लगातार दौरों के तुरंत बाद नरेंद्र मोदी ने इस मोजाम्बिक, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया और केन्या की यात्रा की है।

आज जबकि अफ्रीकी देशों में चीन का 200 अरब डालर का निवेश है वहीँ भारत मात्र 3 अरब डालर के निवेश के साथ अफ्रीका में अभी प्रारम्भिक स्थिति में है। चीन का अफ्रीकी देशों के साथ केवल व्यापारिक सम्बंध है जबकि भारत तो अफ्रीकी देशों के साथ सांस्कृतिक, राजनैतिक व एतिहासिक तौर पर जुड़ा हुआ देश रहा है।

ब्रिक्स देशों के सदस्य होनें के नाते भारत के लिए काम के देश के रूप में अफ्रीका में यह क्षीण निवेश पिछले दशकों में भारत की उदासीनता व लापरवाही को दर्शाता है, वहीं चीन अपनें भारी भरकम निवेश के साथ अफ्रीकी संसाधनों का जोरदार आर्थिक लाभ उठाता रहा है।

दरअसल अफ्रीका 54 देशों का समूह है जो कि अनेक मामलों में सामूहिक निर्णय करता है। इस रूप में अफ्रीका का यह दौरा भारत को संयुक्त राष्ट्र में व अन्य सामरिक स्थानों पर बढ़त की राह पर ला सकता है व आर्थिक क्षेत्र में भी भारत को लाभ की स्थिति में ला खड़ा कर सकता है।

एक महत्वपूर्ण व दीर्घकालीन उद्देश्य के साथ इस दौरे में नरेंद्र मोदी ने बड़े जतन से मोजाम्बिक की ओर कदम बढाए हैं। दरअसल मोजाम्बिक एक ऐसा देश है जो हिन्द महासागर के किनारे बसा हुआ है। इस देश से हुए सभी समझौते हमारे लिए दीर्घकालीन लक्ष्यों को प्रभावित करनें वाले बनेंगे।

इस दौरे में मोजाम्बिक से लिक्विफाइड नेचुरल गैस LNG आयात का समझौता किया गया है। अब तक भारत अपनी आवश्यकता की एलएनजी क़तर से क्रय करता रहा है और एकमेव क़तर पर ही निर्भर रहा है। क़तर की राजनैतिक अस्थिरताओं के चलते भारत को होने वाली एलएनजी आपूर्ति कभी भी प्रभावित या बाधित होने का अंदेशा बना रहता था जो अब नहीं रहेगा।

विश्व की कुल उपजाऊ भूमि की 60% भूमि अफ्रीकी देशों में है और इसमें से केवल 20% भूमि पर ही कृषि की जाती है। इस तथ्य को भारत ने अपने फायदे के तथ्य में बदला व वहां की सस्ती कृषि भूमि पर भारत के लिए दलहन उगाने व आयात का सौदा किया है। मोजाम्बिक से हुआ यह कृषि ठेका व दलहन आयात सौदा भारत की दलहन निर्भरता को लम्बे समय के लिए समाप्त करने के लिए एक बड़ा कदम सिद्ध हो सकता है।

मोजाम्बिक के साथ हुआ एक करार तो हमें हिन्द महासागर में बेहतर बढ़त देगा वहीं कई अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार के साथ नए व सस्ते सुलभ मार्ग को भी खोलेगा, वह करार है बेइरा बंदरगाह को विकसित करनें का। भारत मोजाम्बिक के बेइरा बंदरगाह को विकसित करके हिन्द महासागर में एक नई जमावट करनें जा रहा है।

चीन-पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के मोहरे को हम हाल ही में चाबहार बंदरगाह को विकसित करने का निर्णय कर जवाब दे चुके हैं और अब मोजाम्बिक के साथ बेईरा बंदरगाह को विकसित करनें का निर्णय करके हम हिन्द महासागर में बहुत सी सामरिक चिंताओं से मुक्ति पा पाएंगे।

हिन्द महासागर में चीन की बढ़ती प्रभावी स्थिति के परिप्रेक्ष्य में भारत का चाबहार के बाद यह बेईरा वाला नया तुरुप का पत्ता चीन को तिलमिलानें को मजबूर कर देगा। केवल चीन की दृष्टि से नहीं अपितु 54 देशों के समूह वाले अफ्रीकी देशों में से कई देश भारत के साथ सस्ता, सुलभ व सहज व्यापार बेइरा बंदरगाह के माध्यम से कर पाएंगे।

मोजाम्बिक भी बेईरा बंदरगाह को भारतीय निवेश से विकसित करवा कर आर्थिक बढ़त पानें की स्थिति में पहुंच जाएगा। कहना न होगा कि यह सब अचानक या संयोग से नहीं हो रहा है। चीन के दबाव में चल रही भारतीय विदेश नीति को दबाव से बाहर निकालनें की नरेंद्र मोदी टीम की सुविचारित योजना का हिस्सा है यह!

केन्या व तंजानिया के साथ किए गए रक्षा क्षेत्र के समझौते को भी भारत की इसी नीति की अगली कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। दक्षिण अफ्रीका के साथ भी औषधि, खनिज, खनन, स्वास्थ्य बीमा, अक्षय ऊर्जा आदि क्षेत्रों में समझौते किए गए हैं जो कि हमें अफ्रीकी देशों में सशक्त उपस्थिति दिलानें में सहयोगी होंगे।

: प्रवीण गुगनानी