पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने एक बार चीन से अपने मुल्क के रिश्तों के बारे में कहा था, ‘ये शहद से भी ज्यादा मीठे हैं।’ इस पर चीन में पाकिस्तान के राजदूत ने एक कदम और बढ़ते हुए कहा था-यह सागर से ज्यादा गहरे, पहाड़ों से अधिक ऊंचे और इस्पात से भी ज्यादा मजबूत हैं।
दरअसल रिश्तों की नीव भारत की सामरिक घेराबंदी पर टिकी हुई है। दुनिया में कहीं भी चीन-पाक जैसे रिश्ते का कोई समानांतर नहीं है क्योंकि किसी भी अन्य देश ने अपने दोस्त मुल्क को एटमी हथियार बनाने का डिजाइन, नाभिकीय संवर्धन तकनीक और पुन: प्रसंस्करण समर्था की जानकारी नहीं दी है।
हाल ही में पनामा स्थित बैंकों में दुनिया भर के मशहूर अमीरों और राजनेताओं के जमा काले धन का खुलासा हुआ है। इन नामों में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का नाम भी है। जिनपिंग चीन में अति शक्तिशाली हैं क्योंकि वे राष्ट्रपति होने के साथ-साथ कम्युनिस्ट पार्टी के सर्वोच्च शीर्ष सैनिक आयोग के अध्यक्ष भी हैं।
घरेलू दबाव के चलते नवाज शरीफ की छवि और भी ज्यादा धू्मिल हुई है, जाहिर है इस काम को हवा सेनाध्यक्ष राहिल शरीफ ने दी है। पनामा दस्तावेजों में यह खुलासा हुआ है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और शीर्ष चीनी नेताओं के परिवार या रिश्तेदारों के खाते वहां चल रहे हैं।
कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो के कम से कम आठ मौजूदा अथवा पूर्व सदस्यों के नामों का जिक्र पनामा दस्तावेजों की इस विशेष सूची में उभरकर आया है। मिसाल के तौर पर राष्ट्रपति जिनपिंग के जीजा देंग जिआगुई का नाम इसमें दर्ज है।
राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रतिक्रिया दबंगई वाली थी। यह बात उनके पहले से ताकतवर रुतबे को और बढ़ाती है। वे देंग शियाओ पिंग के बाद पहले ऐसे चीनी नेता हैं जो राष्ट्रपति होने के साथ-साथ पार्टी के शक्तिशाली सैनिक आयोग के अध्यक्ष भी हैं। बल्कि उन्होंने एक कदम आगे जाते हुए सैनिक वर्दी पहनकर खुद को देश की सेना के सर्वोच्च कमांडर के पद पर स्थापित करवा रखा है।
जैसा कि पूर्वानुमान था, इसके पीछे राष्ट्रपति शी की इच्छा है कि सेना उनके सीधे नियंत्रण में रहे। जहां एक ओर शी सार्वजनिक तौर पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ा रुख अख्तियार किए रखते हैं वहीं दूसरी ओर उनके अपने परिवार या रिश्तेदारों के बड़े पैमाने पर व्यापारिक हित और संपर्क हैं। यह कोई गुप्त नहीं कि पूर्व मंत्री वेन जिआबाओ अपनी मां के नाम पर चलाने जाने वाले व्यापार में 2 बिलियन डॉलर से ज्यादा पूंजी के मालिक हैं।
यह सब कुछ उस वक्त हो रहा है जब चीन आर्थिक मंदी से गुजर रहा है। पिछले तीन दशकों में निर्यात आधारित इसकी आर्थिकी का दुनिया के आधुनिक इतिहास में कोई सानी नहीं है, इसमें भी गत बीस सालों से यह दर दस प्रतिशत रही है। हालांकि इसकी मौजूदा वार्षिक वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत के आसपास है और यह चीन के लिए मुश्किलों का आभास देती है।
इसकी उत्पादन दर में गिरावट दर्ज की गई है। चूंकि चीन अब एक खपतकार-आधारित आर्थिकी की ओर बढ़ने लगा है, इसके चलते विश्व भर में माल की खपत को देखते हुए उत्पादन के लिए जो भीमकाय उद्योग स्थापित किए गए थे, उन्हें अब बंद करना पड़ेगा। भले ही इस स्थिति में सिल्क रोड इकोनॉमी बेल्ट और मैरीटाइम सिल्क रोड नामक योजनाओं के सिरे चढ़ने से विदेशों में खपत बढ़ने से कुछ राहत मिलने की आस है।
चूंकि चीन को अपनी अतिरिक्त उत्पादन क्षमता को घटाना पड़ेगा, इसके मद्देनजर वहां बेरोजगारी बढ़ने के आसार हैं। इसलिए ध्यान भटकाने के लिए हो सकता है कि चीन अपने कट्टर राष्ट्रवाद का प्रदर्शन करने की खातिर समुद्रीय और जमीनी सीमा संबंधी अपने दावों में ज्यादा आक्रामक रुख अख्तियार कर ले।
हालांकि उम्मीद इस बात की ज्यादा है कि चीन का मुख्य ध्यान अपनी समुद्री सीमाओं से जुड़े विवादों पर केंद्रित रहेगा, फिर भी हो सकता है वह भारत के साथ सीमा नियंत्रण रेखा पर सहमति बनाए रखने पर आनाकानी करने लगे। पर दोनों देशों के लिए यह लाभप्रद होगा यदि वे आपसी विश्वास बढ़ाने के उपायों और सीमा पर तैनात बलों के बीच ज्यादा बेहतर संवाद व्यवस्था बनाने पर अमल करें।
शी जिनपिंग ने भारत से लगती सीमा के लिए उत्तरदायी अपनी सैन्य शाखा का पुनर्निर्धारण करते हुए चेंगदूं में एक संयुक्त कमान की स्थापना की है। इस बात की संभावना कम ही है कि चीन भारत की सीमा पर बड़े पैमाने का सैन्य दुस्साहस करने का दांव चलेगा। फिर भी वह यह दबाव बनाए रखेगा कि हम अपनी सीमाओं पर अस्थिरता का सामना करते रहें।
सरकार को चाहिए कि वह माउंटेन स्ट्राइक कोर की स्थापना करने के अलावा अपनी वायुसेना क्षमता का आधुनिकीकरण करने को गति दे। पाकिस्तान के ओर-छोर से होकर गुजरने वाली वन बेल्ट, वन रोड परियोजना में 46 बिलियन डॉलर का निवेश करके चीन का नियंत्रण एक तरह से बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर हो जाएगा।
इसके मद्देनजर भारत को भी क्षेत्रीय और बाहरी ताकतों से संपर्क बढ़ाकर चीन द्वारा हिंद महासागर में नौवहनीय मार्गों पर अपना दबदबा बनाने के मनसूबों पर संतुलन कायम करने के लिए पहल करनी होगी क्योंकि इन्हीं समुद्री मार्गों की मार्फत वह पाकिस्तान को पनडुब्बियों और नौसैनिक पोतों की मदद पहुंचाएगा।
हमें इस भुलावे में नहीं रहना चाहिए कि चीन का भारत के प्रति नजरिया क्या है। यह चीन ही है, जिसने पाकिस्तान की परमाणु मिसाइलें और परंपरागत हथियार बनाने की क्षमता बनवाई है। जम्मू-कश्मीर से जाने वालों के लिए चीन का रवैया एकदम अलग है। चीन अरुणाचल प्रदेश के भारतीय नागरिकों को आम वीजा देने से इनकार करता है।
इसके अलावा वह हमारे देश के उत्तरी-पूर्वी राज्यों के विद्रोही संगठनों जैसे कि उल्फा के सदस्यों को म्यांमार-चीन सीमा पर बने कैंपों में मदद और प्रशिक्षण भी मुहैया करवाता है। चीन का इरादा हमेशा यही रहा है कि इस क्षेत्र में भारत का प्रभाव कम किया जाए। इसके अलावा दक्षेस संगठन के हमारे सभी पड़ोसियों में वह भारत विरोधी ताकतों को बढ़ावा भी देता है।
उसने न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप जैसे बहुउद्देशीय मंचों में भारत को सदस्यता दिए जाने पर अड़ंगा लगा दिया है। सबसे ज्यादा अहम यह कि चीन ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान स्थित आतंकी गुटों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को प्रतिबंधित किए जाने वाले प्रस्ताव का विरोध करके उनको संरक्षण दिया है।
अपनी घरेलू आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में चीन का अपने पड़ोसियों के साथ समुद्री और जमीनी सीमा विवादों पर आक्रामक रुख अपनाने को ध्यान में रखकर हमें भारत-चीन सीमा पर समय-समय पर उठ खड़े होने वाले तनाव को कम करने की खातिर लगातार संवाद की प्रकिया बनाये रखनी होगी। चीन के साथ व्यापारिक, आर्थिक और निवेश संबंधी संबंधों को विस्तार देना चाहिए।
ब्रिक्स एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर बैंक और जी-20 मंचों पर हमें चीन के साथ सहयोग जारी रखना होगा। दक्षिण एशियाई देशों में भारत के प्रभाव को निस्तेज करने की चीन की नीति के जवाब में हमें उसकी समुद्री सीमा पर स्थित देशों जैसे वियतनाम, जापान और फिलीपींस के साथ सक्रिय संबंध बनाने चाहिए।
अमरीका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के साथ दक्षिण-चीन सागर और हिंद महासागर में हमें संयुक्त नौसैनिक अभ्यासों को विस्तार देना चाहिए। वियतनाम के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाने के लिए हमें ब्रह्मोस क्रूज मिसाइलों की सप्लाई देनी चाहिए, जिससे चीन के समुद्रीय दुस्साहस को लगाम लगाई जा सके।
हमारे देश के उत्तर-पूर्वी पृथकतावादी गुटों के साथ चीन के संबंधों के चलते भारत को भी अपने यहां दलाईलामा की उपस्थिति से संकोच करने की जरूरत नहीं है और न ही चीन में धार्मिक और राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग करने वालों के लिए शालीन शब्दावली में दिए गए समर्थन पर किसी किस्म की शर्म करनी चाहिए।
भारत को चीन के साथ निपटने के लिए अपनी जैसी सोच रखने वाली ताकतों के साथ मिलकर ऐसी नीति अपनानी चाहिए, जिसमें उन मुल्कों के साथ सहयोग करने के अलावा चीन की सामरिक महत्वाकांक्षाओं पर काबू पाया जाए।
जी पारसारथी