रांची। नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. अशोक कुमार बैद्य ने कहा कि भारत में हर साल साल चार लाख किडनी डोनर्स की जरूरत है। लेकिन इसका दस फीसद भी किडनी ट्रांसप्लांट नहीं हो पाता है।
इसी तरह देश में हर साल 50,000 लोगों को हृदय और लीवर प्रत्यारोपण की जरुरत पड़ती है। लेकिन सिर्फ 15-20 लोगों का हृदय प्रतिरोपण हो पाता है वहीं 700 लोगों का लीवर ट्रांसप्लांट हो पाता है।
बैद्य शुक्रवार को डॉक्टर्स दिवस के अवसर पर होटल लीलैक में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि, हमारे देश में आज भी लोग अंगदान को लेकर खुलकर आगे नहीं आ रहे हैं। हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि मरने के बाद जिस प्रकार शरीर के सारे गहने उतार कर उसे कहीं और प्रयोग कर लिया जाता है, तो नश्वर शरीर के ब्रेन डेड होने की स्थिति में हम लोग अंगदान करने में हिचक क्यों करते हैं।
ब्रेन डेड व्यक्ति के अंगदान करने से सात लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है। हर साल 4 लाख मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है। इसके लिए देश में हर साल 4 लाख किडनी दान करने वालों की जरूरत है। लेकिन भारत में हर साल 7000 से 8000 ही किडनी ट्रांसप्लांट हो पाती हैं।
जरूरत और पूर्ति के बीच की यह दूरी डोनर्स के कमी के कारण है। डॉ बैद्य के मुताबिक अंग प्रत्यारोपण की दिशा में सबसे बड़ी दिक्कत अंग दानदाताओं का अभाव है। जागरूकता की कमी की वजह से अंग प्रत्यारोपण की गति धीमी है। लोगों के बीच इसे लेकर कई सारे मिथक भी हैं और अंग प्रत्यारोपण की दिशा में आने वाली अड़चनों को खत्म करने के लिए इन्हें समाप्त किया जाना भी जरूरी है।
बड़ी संख्या में भारतीयों का कहना है अंगों की कांट-छांट या उन्हें शरीर से अलग करना प्रकृति और धर्म के खिलाफ है। कुछ लोगों का मानना है कि अगर उन्हें अंग प्रत्यारोपण कराना हो तो अस्पताल के कर्मचारी उनकी जिंदगी बचाने के लिए मेहनत नहीं करेंगे।
कुछ का मानना है कि मरने से पहले ही उन्हें मृत घोषित किया जा सकता है। अगर लोगों को ब्रेन डेथ के बारे में पता नहीं है तो मरीज के परिजनों को अंग दान करने के लिए समझाना मुश्किल होता है।
डॉ. अशोक कुमार बैद्य ने बताया कि सरकार ने 1994 में मानव अंग प्रत्यारोपण (टीएचओ) अध्यादेश पारित किया था। इस कानून के तहत असंबद्ध प्रत्यारोपण को गैरकानूनी बना दिया और मस्तिष्क की मृत्यु (ब्रेन डेथ) की स्वीकृति मिलने के बाद मृतक के अंग दान को कानूनी करार दिया। भारत में मृतक की ओर से अंग दान की भारी संभावना है क्योंकि यहां भारी संख्या में जानलेवा सड़क दुर्घटनाएं होती हैं।
किसी भी समय हर प्रमुख शहर के सघन चिकत्सा केंद्रों में आठ से दस ब्रेन डेथ के मामले होते ही हैं। अस्पतालों में होने वाली मौतों के मामले में चार से छह फीसदी ब्रेन डेथ के ही होते हैं। भारत में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में 14 लाख लोगों की मौत हो जाती है।
एक अध्ययन ( एम्स, दिल्ली) के मुताबिक इनमें से 65 प्रतिशत लोगों के मस्तिष्क में चोट लगी होती है। इसका मतलब यह है कि 90,000 मामले ब्रेन डेथ के हो सकते हैं। कोई भी व्यक्ति, बच्चे से लेकर बड़े तक अंग दान कर सकता है।
जिस व्यक्ति की मस्तिष्क की मृत्यु हो चुकी हो और जिसे मृत्यु बाद अंग दान कहा जाता है वह अभी भारत में बहुत कम है। स्पेन में प्रति दस लाख लोगों पर अंग दान करने वाले 35 लोग हैं। ब्रिटेन में यह संख्या प्रति दस लाख लोगों पर 27, अमरीका में 11 है। लेकिन भारत में प्रति दस लाख लोगों में अंग दान करने वाले सिर्फ 0.16 व्यक्ति हैं।
डॉ. बैद्य के अनुसार अगर अंग दान करने की इच्छा तो इस दिशा में दानदाता कार्ड पर हस्ताक्षर करना पहला कदम है। दानदाता कार्ड कोई कानूनी दस्तावेज नहीं है लेकिन यह किसी व्यक्ति के अंग दान की इच्छा को दर्शाता है।
जब कोई व्यक्ति अंग दान दाता कार्ड पर हस्ताक्षर करता है तो यह उसके अंग दान की इच्छा को जाहिर करता है और इस बारे में उसके निर्णय को उसके परिवार के लोगों या दोस्तों को बताना महत्वपूर्ण है। क्योंकि अंग दान के लिए परिवार के सदस्यों को सहमति देने के लिए कहा जाएगा।
मस्तिष्क की मृत्यु होने की स्थिति में महत्वपूर्ण अंग जैसे यकृत, फेफड़ा, गुर्दा, अग्नयाश्य, आंत, उत्तक जैसे कॉर्निया, हृदय के वाल्व, को दान किया जा सकता है। गुर्दा और आंत देने के लिए किसी संकल्प की ज़रूरत नहीं होती है। वो आवश्यकता अनुसार दान किए जा सकते हैं ।