प्रशान्त झा
अजमेर। भारत ने 28 अप्रेल को अपने 7वें नेवीगेशन सैटेलाईट आईएनआरएसएस 1 जी का पीएसएलवी— सी 33 प्रक्षेपण यान से सफलतापूर्वक प्रक्षेपण कर न सिर्फ चुनिन्दा देशों की कतार में शामिल होने की दस्तक दी है बल्कि सैन्य क्षेत्र में भी मजबूती से अपने झंडे गाड दिए हैं।
यह आईएनआरएसएस श्रेणी का 7वां उपग्रह है जो श्रेत्रीय जीपीएस की भारत की कडी को पूरा करता है। भारत इस क्षमता से लैस होने वाला अमरीका और रूस के बाद तीसरा देश बन गया है जबकि चीन, जापान और यूरोपीय देश अभी इस तरह के कार्यक्रमों के विकास के चरण में ही हैं और चीन की परियोजना भी 2020 तक ही पूरी हो पाएगी।
देशी जीपीएस भारत को उपमहाद्वीप के आसपास की 1500 किमी की क्षेत्रीय परिधि के अन्दर निगरानी रखने के साथ परिवहन, रेल, नौवहन, मत्स्य उद्योग, कृषि, शिक्षा, नक्शे निर्माण व सैन्य उपयोग के साथ दैनिक जनउपयोग हेतु भी मदद देगा।
इस तकनीक की मदद से हम सडक पर कार चलाते हुए अपने मोबाईल पर रास्ता खोजते हुए आसानी से अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं। समुद्र में मछुआरों को मछली पकडने के लिए किस छेत्र में जाल डालना है, रेल परिवहन में रेल यात्रा को और अधिक सुरक्षित बनाने के लिए रेल यातायात, पुल, रेल लाईनों की निगरानी सहित रखरखाव में आसानी होगी।
कारगिल युद्ध में दुश्मन की सही उपस्थिति का पता लगाने के लिए जब भारत को अमरीकी मदद की दरकार थी ऐसे अहम मौके पर अमरीका ने हमें अपने उपग्रह से जानकारी साझा करने से मना कर दिया था जिससे पहाड की उचाईयों पर छिपे बैठे दुश्मन ने हमारे सैनिकों को आसान निशाना बना डाला था।
यदि उस समय यह तकनीक हमारे पास होती तो हमारे इतने अधिक जवान नहीं मारे जाते और हम आसानी से पहाडियों पर कब्जा कर लेते। इस तकनीक से हमारे तोपखाने और मिसाइलों को ऐसे लक्ष्यों पर दुश्मन को भेदने में आसानी होगी।
जन उपयोग के अनेक समाधान के अतिरिक्त हमारी सैन्य तकनीक को और सटीक और मारक बनाने में हमारे में हमारा जीपीएस उपयोगी सिद्ध होगा। इस तकनीक की मदद से हमारे मिसाईल ‘निर्भय’ और ‘ब्रहमोस’ को लक्ष्य को पहचान कर अचूक प्रहार कर नष्ट करने में मदद मिलेगी।
सैना को सरहदोें की निगरानी के लिए ‘यूएवी’ (ड्रोन) का उपयोग कर कम समय में सूचना साझा करने और कार्यवाही करने में सफलता मिलेगी और सरहदों और समुद्री किनारों पर आतंकवादी घुसपैठ को रोका जा सकेगा।
यह तकनीक नौसेना में शामिल होने वाली परमाणु पनडुब्बी अरिहन्त और इसके अगली पीढी की पनडुब्बीयों को आपने मार्ग की निगरानी रखते हुए लक्ष्यों पर नजर रख उन्हें सटीक प्रहार कर नष्ट करने में सहायक होगी। नए हथियारों के परीक्षण उनकों लक्ष्य की ओर बढने और उनके मार्ग आदि के मूल्यांकन आसान होगा।
हालांकि हमारा जीपीएस क्षेत्रीय होगा पर हमारी जरूरतों के लिए यह हमें आत्मनिर्भर बना देगा और आवश्यकतानुसार इस क्षमता का भविष्य में विस्तार भी किया जा सकता है।