श्रीहरिकोटा। देश के तीसरे दिशासूचक उपग्रह को बुधवार आधी रात को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करने के साथ ही भारत अपने खुद के उपग्रह दिशासूचक प्रणाली के बिल्कुल करीब पहुंच गया है। साथ ही वह इस तरह की प्रणाली रखने वाले देशों की सूची में शामिल होने से बस एक क दम दूर रह गया है। इस प्रणाली से लैस अमरीका, रूस, चीन तथा जापान के बाद भारत पांचवा देश बन जाएगा।…
बुधवार आधी रात को तीसरे उपग्रह के प्रक्षेपण के साथ ही भारत खुद के उपग्रह दिशासूचक प्रणाली से बस एक उपग्रह और एक महीने ही दूर रह गया है। अपने प्रयास से भारत इस तरह की प्रणाली रखने वाले देशों (अमरीका, रूस, चीन तथा जापान) के क्लब का सदस्य बनने से बस चंद कदम की दूरी पर है।
भारत द्वारा विकसित दिशासूचक प्रणाली उपयोगकर्ताओं देश के अंदर तथा देश की सीमा रेखा के 1,500 किलोमीटर के दायरे में दिशा स्थिति क ी सटीक जानकारी देगी।
इसरो के अधिकारी ने कहा कि इंडियन रीजनल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम (आईएनआरएसएस) के तहत सात उपग्रहों को छोड़ने की योजना है, जिसमें से अब तक तीन को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया जा चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा कि यह प्रक्षेपण अपार गर्व और खुशी की बात है।
आईएनआरएसएस उपग्रह के साथ 44.4 मीटर लंबा और 320 टन भार वाला रॉकेट धु्रवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी-सी26)ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से बुधवार आधी रात को 1.32 बजे उड़ान भरी। उड़ान के करीब 20 मिनट बाद पीएसएलवी-सी 26 आईआरएनएसएस- 1सी से धरती से करीब 500 किलोमीटर दूर जाकर अलग हो गया।
चौथे दिशासूचक उपग्रह के दिसंबर में प्रक्षेपित होने की संभावना है। आईआरएनएसएस के तहत बाकी उपग्रहों को 2015 में प्रक्षेपित किए जाने की योजना है।
इसरो के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन ने कहा कि क्रू मॉडयूल के साथ जीएसएलवी मार्क 3 (भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान) प्रयोगात्मक मिशन को 45 दिनों के भीतर लांच किया जाएगा। 48 ट्रांसपोंडरों के साथ जीएसएटी-16 को एरियन रॉकेट द्वारा फ्रेंच गयाना से दिसंबर में लांच किया जाएगा।
सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक एम.वाई.एस.प्रसाद ने कहा कि एक अन्य आईआरएनएसएस उपग्रह प्रक्षेपण मिशन का आगाज दिसंबर-ज् ानवरी में होगा। राधाकृष्णन पहले ही कह चुके हैं कि सात उपग्रहों वाली आईआरएनएसएस दिशासूचक प्रणाली चार उपग्रहों के प्रक्षेपण के बाद ही काम करना शुरू कर देगी।
उम्मीद है कि भारतीय दिशासूचक प्रणाली प्राथमिक सेवा क्षेत्र में 20 मीटर की तुलना में बेहतर और सटीक स्थिति की जानकारी देगी और यह अमेरिका के जीपीएस, रूस की ग्लोनास, यूरोप की गैलीलियो, चीन की बीडू और जापान की क्वासी जेनिथ उपग्रह प्रणाली की तरह ही होगी।
इस प्रणाली का इस्तेमाल जमीनी, वायु और समुद्री दिशासूचक, आपदा प्रबंधन, वाहनों की निगरानी और बेड़ा प्रबंधन, मोबाइल फोन के साथ एक ीकरण, मैपिंग और भूगणितीय आंकड़े दर्ज करने तथा चालकों के लिए दृश्य और आवाज दिशासूचक तथा अन्य कार्यो के लिए होगा।
आईआरएनएसएस प्रणाली के तहत दो तरह की सेवाएं मिलेंगी, पहला मानक पोजिशनिंग सेवा जबकि दूसरा सीमित सेवा। मानक पोजिशनिंग सेवा सभी उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध होगा, जबकि सीमित सेवा का इस्तेमाल केवल अधिकृत उपयोगकर्ता ही कर सकेंगे।